27 जून, 2019

स्वागत वर्षा का


बूँदें बारिश की 
टपटप टपकतीं
  झरझर झरतीं
धरती तरवतर होती
गिले शिकवे भूल जाती |
हरा लिवास  पहन ललनाएं
कई रंग जीवन में भरतीं 
हाथों में मेंहदी रचातीं
मायके को याद करतीं |
सावन की घटाएं छाईं 
आसमान हुआ  स्याह
पंछियों ने गीत गाया
गुनगुनाने का जी चाहा   |
झिमिर झिमिर वृष्टि जल की
ताप सृष्टि का हरती
वर्षा की नन्हीं बूंदें 
 थिरकती नाचतीं  किशलयों पर|
वे हिलते डुलते मरमरी धुन करते
हो सराबोर जल 
  नृत्य में सहयोग करते
आनंद  चौगुना करते |
नहाती बच्चों की  टोली वर्षा में
 है  यही आनंद वर्षा में नहाने का
सृष्टि के सान्निध्य का |

25 जून, 2019

बारिश के मौसम में


                                                         बारिश के मौसम में
                                                               बरसता जल 
छोटा सा पुल उस पर
 छाई  हरियाली 
चहु ओर 
पुष्प खिले बहुरंगे 
मन को रिझाएँ 
उसे बांधना चाहें |
लकड़ी का पुल
 जोड़ता स्रोत के
 दोनो किनारों को 
हरीतिमा जोड़ती 
मन से मन को |
आसमा में स्याह बादल 
हुआ शाम का धुंधलका
समा सूर्यास्त होने का 
ऐसे प्यारे मौसम में 
मन कुछ  लिखने का होय |
आशा

24 जून, 2019

पैगाम






 आया है पैगाम

वादेसवा के साथ
मन का मोर नाच रहा
चंग की थाप पर
जिन्दगी चैन से गुजरेगी
गिले शिकवे दूर होंगे
  प्यार की शहनाई बजेगी
हर समय हर बात पर
यह पैगाम नहीं
है आवाज सच्चे दिल की
जिससे भागना सही नहीं
अपने मन की आवाज पर
जोर दे करना है स्वीकार
उस पैगाम की भाषा पर
एलान करना है अमल करना है
केवल व्यर्थ यूँ ही नहीं
बेमतलब शोर करना है
तभी अमन का विगुल बजेगा
सन्देश का मकसद
सफल हो कर रहेगा |
आशा

23 जून, 2019

दिल मेरा


  
दिल  तो है विशाल
बहुत कुछ समा सकता है इसमें
तुम पढ़ते पढ़ते थक जाओगे
मेरे भीतर मिलेगा तुम्हें
एक अखवार मोहब्बत का
जिसमें छपा होगा कोई पैगाम
जब भी उसे  पढ़ोगे
छलकेंगे नयन तुम्हारे
फिर भी उसे न खोज पाओगे
है वहां छिपी एक ऎसी पहेली
ना ही उसे समझ  पाओगे
ना ही हल कर पार्ओगे
मन है ही एक उलझनों का अखवार
जितना सोचोगे विचारोगे 
 उलझन के चक्र व्यूह में
  उलझते ही चले जाओगे |
आशा
  

वरण नए चोले का





18 जून, 2019

पालकी

जन्म से ही
 शिशु को मिली पालकी
पहला पालना मिला 
 माँ की गोद का
दूसरा अपने वालों का
फिर आए दिन
 नित नई बाहों में खेल
बचपन बिताया
 जी भर खेल  कर
जवानी जब आई झांकती
 माँ को चिंता हुई
 बेटी की बिदाई की
जब वर आया  
  घोड़ी पर चढ़ कर
 धूमधाम से बिदाई हुई
 पालकी में बैठ कर
तब भी चार कन्धों पर की सवारी
पालकी में हो कर सवार
 चली ससुराल अपनी 
जीवन सहजता से
 सरलता  से बीत गया
धर्म कर्म में भी
 दिया सहारा पालकी ने
कियेअधिकाँश देव दर्शन
 इसी पालकी में बैठ 
अब आया समय
 संसार से विदाई का 
छोड़ कर यह देह
 आत्मा ने ली बिदाई  
चार कन्धों पर  की सवारी
 अर्थी पर हो कर सवार चली
 अच्छाई बुराई भलाई 
के सारे कर्म
 साथ ले चली अपने
हर जगह महत्व
 देख पालकी का
मन ही मन किया  नमन
 उन सब भागीदारों को
पालकी उठाने वालों को |
आशा




12 जून, 2019

इंसानियत के ह्रास पर










इंसानियत के ह्रास  पर
 कितने ही -भाषण सुन   कर
प्रातः काल नींद से जागते ही
मन का सुकून खो जाता है
अखवार में अधिकाँश
 कॉलम भरे होते  है
आपत्ति जनक समाचारों से
मानावता शर्मसार हुई है
मानव के अवमूल्यन से
दरिंदगी से भरी हुई हैं
आधी से अधिक घटनाएं
समाज में इतना विधटन होगा
कभी कल्पना नहीं थी
सारी मान्यताएं खोखली हो रहीं  
 आधुनिकता की भेट चढ़ती  रहीं  
कुछ कहने पर कहा जाता
है यह सोच का ढंग पुराना
आज के बच्चे यह सब नहीं मानते
पर हम तो इतना जानते हैं
जब भी किसी अवला की
 चुन्नी तार तार हुई है 
किसी अबोध के संग दुराचार  हुआ है 
उसे मार कर फैका गया है
निगाहें शर्मसार हुई हैं
मन में पीड़ा होती है 
दरिंदगी की हद होती है
इंसानियत दम तोड़ रही है
आधुनिकता को कोस रही है |
आशा

11 जून, 2019

परचम


उठो चलो आगे बढ़ो
                                                               थामों हाथ ऐसे लोगों का
                                                             जो हमसफर हों हमराही हों
                                                               मनोबल पर नियंत्रण रखो
                                                             कभी भूल से भी डिगने न पाए
                                                            तभी पहुँच पाओगे लक्ष तक
                                                          ऊंचाई की आखीरी पायदान पर
                                                        स्वर्ग में विचरण का अनुभव करोगे
 वहां पहुँचना कठिन तो है पर असंभव नहीं
हर यत्न सफलता में बदलो
फिर परचम लहराओ पूरे आत्म विश्वास से
करो सपने पूर्ण अपने और अपनों के
है यही कामना का धन जो सजोया है
अपने मन के आँगन में |
आशा

                       

07 जून, 2019

ओस की एक बूँद पत्ते पर

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वह चित्र क्या
जो सोचने को बाध्य न करे
इसमें है ऐसा क्या विशेष
जो शब्दों में बांधा न जा सके
सोच तुरन्त मन पर छा जाए
शब्दों में सिमट जाए
तभी लेखन में आनंद आए
डाल से बिछुड़े पत्ते पर
शवनम का मोती हो
जिस में प्रकृति की छाया
सिमटी हो सूक्ष्म रूप में
तब कैसे लेखन से हों  महरूम 
स्वतः ही कलम चलने लगती है
एक नई छबि मन में उभरने लगती है |
                                                                            आशा

04 जून, 2019

उजाला


चाँद की चांदनी
खिड़की से अन्दर झांकती
कण कण हो जाता जगमग
रौशन होता घर द्वार |
नन्हें दीप देते उसका साथ
पर सह न पाते वायु का वार
हार थक कर सो जाते
धीमाँ हो जाता उजाला |
पर चांदनी हार न मानती
दुगने बेग से फैल जाती
                                                चमकाती घर द्वार |
                                                                       आशा