14 जुलाई, 2020

हरे पत्ते अटखेलियाँ करते सूर्य रश्मियाँ से





जब सूर्य की  रश्मियाँ नृत्य करतीं
हरे भरे वृर्क्षों पर वर्षा ऋतु में
उगे  हरे पत्ते  मखमली लगते
सूर्य किरणों से हुई आशिकी जब 
अद्भुद समा हो जाता  |
कभी इधर कभी उधर
जहां स्पर्श होता उनका
आपस में अटखेलियां  करते
उनकी खिलखिलाहट का
छुअन का  आभास होता |
अजीब सी सरसराहट होती
मंद पवन के झोंके से जब
 मिलते आपस में पत्ते
सूर्य रश्मियों में नहाए होते  
कोई इतना भी करीब हो सकता है
ऐसा एहसास जाग्रत होता |
इस सुनहरी आभा को देखते रहने का 
मनोरम  दृश्य को  मन में सजोने का
उसे दिल में बसाने का
फिर दिल में झांकने का 
 कई  बार प्रलोभन होता
 हर बार मन होता उसी दृश्य को 
 बार बार  जीवंत करने का |
                                                आशा

13 जुलाई, 2020

आराधना





हुई क्यूँ देर मुझे?
इस ग्रंथि को सुलझाने में 
किसे पूजूं किससे फरियाद करूं
है  ईश्वर एक  पर नाम अनेक |
मुझे बस इतना ही सोचना है
कौनसा नाम मुझे आकृष्ट करता है
उस पर अपनी सहमती जताना है 
 उस पर ही सारी श्रद्धा रखनी है |
हर बार किसी नाम विशेष पर
ध्यान केन्द्रित करती हूँ
जब मन नहीं मानता 
संतुष्टि नहीं होती  किसे नित ध्याऊँ |
आराधना प्रभू की जीवन में
बहुत महत्व रखती है
कठिन से कठिन कार्य
मिनटों में दूर कर देती है  |
सच्चे मन से मांगी गई मुराद  
 तभी पूर्ण हो पाती है
 उसके प्रति समर्पण और आस्था  
हो जब  पूर्ण रूप से |
जब हो आराधना उसकी मन से
श्रद्धा हो प्रभु के उसी  एक नाम में
सभी फलों की प्राप्ति हो जाती है
जीवन को   सफल कर जाती है|
आशा

12 जुलाई, 2020

हुस्न की बिजली

 
                                    बैठे रहिये दिल को थाम कर
कोई और नहीं है वह है वही
 जो हुस्न का बहता दरिया था कभी  
 हुस्न की बिजली दिलों पर
 फिर से  गिराने आ गया |
मन में था एक शगल जिसे
वह भूल नहीं   पाया था  
इधर उधर भटकता रहा
 पर राह न मिल पाई  
उसी लीक पर चल दिया
जिस पर पहले चला था |
बादल से बादल टकराए
चमकी  बिजली आसमान में
 लो हुस्न की बिजली दिलों पर
वह फिर से गिराने  आ गया |

आशा

11 जुलाई, 2020

अफवाहें





हर समय बाजार गर्म रहता   
अफवाओं के प्रसार में  
प्रत्येक व्यक्ति आनंद लेता  
उनके प्रचार प्रसार में |
निंदा रस में जो आनंद आता है
उससे बंचित क्यूँ रहें  ?
और कुछ नहीं तो हंसने  का
 अवसर तो मिल जाता है |
जब भी अवसर मिल जाए
बहुत आनंद आता है सबको  निंदा  रस में
चटकारे ले कर अफवाओं को
 बेल की तरह  परवान चढाने में  |
झूटी सच्ची बातों को बढ़ चढ़ कर फैलाने में
यदि यह भी हांसिल ना हो पाया
 तो कोई बात नहीं कुछ समय तो गुजरता है
लोगों को सोचने का अवसर तो  मिलता है
 नया शगूफा छोड़ने का  |
आशा