23 सितंबर, 2020

विश्व शान्ति दिवस

 

 

 अधिकाँश विश्व जूझ  रहा

समस्याओं के जंजाल से

युद्ध की विभीषिका से

कोरोना की मार ने भी

नहीं बक्शा उसे

कहाँ शान्ति खोजे

किससे उसे मांगे  

चारो और त्राहित्राही मची है

परमाणु  बम परीक्षण की तैयारी है 

हर और अशांति फैली है

समझ में नहीं आता की

 कैसे इससे बच निकलें

शान्ति की खोज अभी  जारी है

तभी तो विश्व शान्ति दिवस

मनाने की तैयारी है

शायद कोई सूत्र हाथ लग जाए

शान्ति कायम करने का और

 शान्ति से जीवन व्यापन हो

सारे विश्व के रहवासियों का

फिर धूमधाम से मने यह दिवस

हर वर्ष की तरह |

21 सितंबर, 2020

घर



 

 

घर तो घर ही होता है

देश में  हो या परदेश में

जहां चार जने अपने होते है

वहीं स्वर्ग हो जाता है |

एक दूसरे का सुख दुःख

अलग नहीं होता

आपस में बांट लिया जाता

ऐसा प्यार कहीं नहीं मिल पाता|

चार दीवारों से मकान तो बन जाता  

पर घर नहीं बन पाता

केवल एक छत के नीचे रहने से

पर मनों के ना मिलने से वह सराय  हो जाता |

सच्चा घर तो वही है जहां

अपनापन लिए हुए सब उलझनों का

समस्याओं का निदान हो  जाता है

दो जून की रोटी का जुगाड़ हो जाता है |

सब मिल बाँट कर  भोजन कर लेते है

समस्याओं के हल खोज लेते हैं

मेरा तेरा नहीं करते वही अपने कहलाते

प्यार के दो बोल के लिए नहीं तरसाते |

घर को स्वर्ग कहा जाता है

यूँ ही नहीं उसमें है योगदान

घर के रहवासियों का भी 

वही मकान  को घर में बदल देते हैं |

आशा

20 सितंबर, 2020

कहाँ सजाऊँ यादों को


 

 

है बहुत पुरानी बात

 अचानक आज याद आई

भूली भटकी यादों को

अब कहाँ समेटा जाए |

मस्तिष्क में अब

रिक्त स्थान नहीं है

इस याद को कहाँ समेटूं

कहाँ दूं स्थान इसे |

कैसे इसे याद रखूँ

किसी बात से जब मन दुखे

 उसे भूलना ही अच्छा है

जीवन सहज चलने के लिए है अति आवश्यक  |  

तुम से नेह कभी कम न हुआ

उसे जीवन भर का संचित धन  समझा

है वही अनमोल मेरे लिए

प्रभु भक्ति से बढ़ा  कम न हुआ  |

अब तो आदत सी हो गई  है

तुम्हारी यादों के संग जीवन बिताने की

उनसे दूर हो कर जी नहीं पाऊँगी

तुमसे यदि  न कही किससे कहूंगी |

                                                  आशा

19 सितंबर, 2020

तुमने साथ दिया है

 


                                                                

 

                                                             सुख तो होता  चंद दिनों  का

पर तुमने साथ दिया है मेरा

दुःख तुमने सच्ची मित्रता निभाई है

जीते है साथ मरने की किसने देखी|

जीवन से कभी असंतोष न हुआ

सोच लिया  यही है प्रारब्ध मेरा

सदा हंसती रही हंसाती रही

अब न जाने क्यूँ उदासी ने घेरा |

 कल्पना में ही जीवन जिया  

कठिनाई को बोझ न समझा

हवा का रुख हुआ जहां

उस ओर ही बहती चली गई |

जरा सी है यह जिन्दगी

खिले फूल को मुरझाना ही होगा

आज नहीं तो कल

पंचतत्व में मिलना होगा |

यह जान लिया है मैंने

अब तक स्वप्नों में खोई थी  पर अब नहीं  

सत्य के इतने करीब आकर

दूर कैसे  जा पाउंगी |

आशा