कोरोना आया बताए बिना
पंख फैलाकर उड़ा बिना पंख
मटियामेट कर गया जीवन को
सामान्य जन जीवन अस्तव्यस्त हुआ |
फिर लौट कर मुंह चिढाया
न कहा अलविदा फिर से हाबी हुआ
शायद जाने वाला मार्ग भूला |
महामारी जैसे शब्द से
अब तो नफरत सी हो गई है
पहले तो कभी सुना नहीं था
हाँ किताब में जरूर पढ़ा था |
है इसका इतना विकराल रूप
स्वप्न में भी कल्पना न थी
ऐसे
दहशत भरे दिनों की
जाने
कितने मरे सही आंकड़ा नहीं मालूम
शेष भोग रहे त्रासदी इस महामारी की |
प्रभू परीक्षा
ले रहा धरती के निवासियों की
कितनी प्रगति की है चिकित्सा के क्षेत्र में
कोई
निवारण का स्त्रोत खोजा नहीं है
केवल समाचार
ही सुने वेक्सीन आने के |
आशा