देहली से जम्मू के लिए विमान का टिकिट था |बहुत उत्साह था पहली बार विमान से
जाने का |समय कब निकला मालूम ही नहीं पड़ा
|विमान में खिड़की की सीट मिली थी ऊपर से नीचे के दृश्य बहुत ही मन भावन दिखे
|जम्मू पहुँचते ही कल्पना जगत में खो गई |आगे की यात्रा भी विमान से होनी थी
|रात्रि में एक होटल में रुके |सुबह आठ बजे का टिकिट था |अतः जल्दी से तैयार हुए
और विमान तल की ओर चल दिए |बहुत पहले पहुँच गए | बाहर कुछ लोग बड़े बड़े पोटले ले कर
बैठे थे | मैंने पूंछ ही लिया आप कहाँ
जारहे हैं वे बोले श्रीनगर जा रहें हैं| समय पर उड़ान भरी |रास्ते में टिकिट
चेकर ने नाम ले ले कर सब के आने की जानकारी चाही |एक व्यक्ति का नाम बार बार लिया
पर वह नहीं बोला |
अचानक दृष्टि उस पोटली बाले पर जा
कर टिक गई |यह वही पोटली वाला था |जिससे मैंने सुबह बात की थी |वह इतना व्यस्त था
अपनी पोटली सम्हालने में कि मुझे ताज्जुब हुआ |इतनी बड़ी पोटली कैसे उसने विमान के
अन्दर बैठने के स्थान पर रख ली थी | उसने बताया था कि वह अपना सामन विमान से ही ले
जाता आता है |
बहुत जल्दी ही हम श्री नगर विमान ताल पर पहुँच गए |अपना सामान लिया और बाहर
टेक्सी का इन्तजार कर रहे थे कि एक सज्जन ने आकर पूंछा क्या आप उज्जैन से आए हैं
?बड़ा आश्चर्य हुआ कि यहाँ हमारी जानकारी लने
वाला कौन है |गुड्डी के फेसबुक में
मित्र ने अपने एक मातहत को भेजा था हमें रिसीव करने |उसने डल झील
के सामने होटल में रूम बुक करवा लिया |खिड़की से झील का नजारा
बहुत सुन्दर दीखता था |झील में तैर रहीं मोटर बोट बहुत आकर्षित कर रहीं थीं
|शाम को घूमने का प्लान बनाया पहले दिन होटल से बाहर निकले और पैदल चल दिए झील के
किनारे किनारे |फिर लौट आए
रात्रि का भोजन होटल में ही किया |दूसरे दिन बाहर जाने का मन था |टेक्सी के
आते ही पहल गाँव की ओर जा रहे थे |जितना सुन्दर श्री नगर है वहां के गाँव बहुत ही
गंदे लगे |लोग भी मैले कुचेले कपडे पहने
अपने अपने कामों में व्यस्त थे |दोपहर में पहल गाँव में भोजन किया और घूमा |