व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षा का बहुत महत्व है |शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो अनवरत चलती रहती है जन्म से मृत्यु तक |जन्म से
ही शिक्षा प्रारम्भ हो जाती है |शिशु अवस्था में माता बच्चे की पहली गुरु होती है
|यही कारण है कि संस्कार जो मिलते हैं मा से ही मिलते हैं |जैसे जैसे वय बढती है
बच्चे पर और लोगों का प्रभाव पडने लगता है |आसपास का वातावरण भी उसके विकास
में एक महत्वपूर्ण कारक होता है |
स्कूल जाने पर शिक्षक उसका गुरू होता है |बच्चों में
अंधानुकरण की प्रवृत्ति होती है
जो उन्हें सब से अच्छा लगता है वे उसी का अनुकरण करते हैं और उस जैसा बनना
चाहते हैं |
यही कारण है कि बच्चा अपने शिक्षक का कहा बहुत जल्दी मानता है |
जब वह
कॉलेज में पहुंचता है तब मित्रों से बहुत प्रभावित होता है और उनकी संगत से बहुत
कुछ सीखता है |इसी लिए तो कहते हैं :-
“पानी पीजे छान कर ,मित्रता कीजे जान कर “
शिक्षा में यात्रा का भी बहुत महत्वपूर्ण योगदान है |यात्रा करने से भी कुछ कम सीखने को नहीं मिलता |कई
लोगों के मिलने जुलने से ,विचारों के आदान प्रदान से ,कई संस्कृतियों को देखने से
,प्रकृति के सानिध्य से बहुत कुछ सीखने को मिलता है | केवल
वैज्ञानिक सोच ,अनुकरण ,बौद्धिक विकास ही केवल शिक्षा नहीं है |सच्ची शिक्षा है
अपने आप को जानना सुकरात ने कहा था
कि सही शिक्षा है “know thyself “ चाहे जितना पढ़ा लिखा पर
यदि वह अपने आपको न जान् पाए तो सारी
शिक्षा व्यर्थ है |
यही कारण है कि शिक्षक से यह अपेक्षा की जाती है कि
वह बच्चे में छिपे
सद् गुणों को
समझे और उनके विकास में सहायक हो |वह बालक को,उसके गुणों को , सीपी में
छिपे मोती को बाहर निकाले और तराशे ऐसा कि बालक जान पाए कि आज के दौर में वह कहाँ खडा है और उसका सम्पूर्ण विकास कैसे हो सकता है |
आशा