स्वत्व पर मेरे पर्दा डाला ,
मुझको अपने जैसा ढाला ,
बातों ही बातों में मेरा ,
मन बहलाना चाहा ,
स्वावलम्बी ना होने दिया ,
अपने ढंग से जीने न दिया |
तुमने जो खुशी चाही मुझसे ,
उसमें खुद को भुलाने लगी ,
अपना मन बहलाने लगी ,
अपना अस्तित्व भूल बैठी ,
मन की खुशियाँ मुझ से रूठीं ,
मैं तुम में ही खोने लगी |
आखिर तुम हो कौन ?
जो मेरे दिल में समाते गए ,
मुझको अपना बनाते गए ,
प्रगाढ़ प्रेम का रंग बना ,
उसमें मुझे डुबोते गए |
पर मैं ऊब चुकी हूँ अब ,
तुम्हारी इन बातों से ,
ना खेलो जज़बातों से,
मुझको खुद ही जी लेने दो ,
कठपुतली ना बनने दो ,
उम्र नहीं रुक पाती है ,
जीने की ललक अभी बाकी है |
आशा
30 अप्रैल, 2010
29 अप्रैल, 2010
ख़ुद ही कविता बन जाओगी
मैंने देखा जब से तुम को ,
कुछ लिखने का मन करता है ,
तुम सामने बैठी रहो ,
एक कविता बनती जायेगी ,
सुंदरता का गहरा रंग ,
कविता में समाता जायेगा ,
सौंदर्य बोध जागृत होगा ,
मन में घर करता जायेगा ,
सौंदर्य के सभी आयाम ,
कविता में आते जायेंगे ,
कविता बढ़ती जायेगी ,
कलम न रुकने पायेगी ,
ऐसा लगता है मुझ को ,
मैं अपनी सुधबुध खो बैठूँगा ,
अधिक समय यदि तुम ठहरीं ,
खुद ही कविता बन जाओगी |
आशा
कुछ लिखने का मन करता है ,
तुम सामने बैठी रहो ,
एक कविता बनती जायेगी ,
सुंदरता का गहरा रंग ,
कविता में समाता जायेगा ,
सौंदर्य बोध जागृत होगा ,
मन में घर करता जायेगा ,
सौंदर्य के सभी आयाम ,
कविता में आते जायेंगे ,
कविता बढ़ती जायेगी ,
कलम न रुकने पायेगी ,
ऐसा लगता है मुझ को ,
मैं अपनी सुधबुध खो बैठूँगा ,
अधिक समय यदि तुम ठहरीं ,
खुद ही कविता बन जाओगी |
आशा
28 अप्रैल, 2010
तपिश
खत चाहे जितने भी जला दो ,
मुझको न भूल पाओगे ,
अपनी चाहत को भी तुम ,
कैसे झुठला पाओगे ,
मेरी चाहत की ऊँचाई ,
तुम कभी न छू पाओगे ,
उस आग की तपिश में ,
खुद ही झुलसते जाओगे |
आशा
मुझको न भूल पाओगे ,
अपनी चाहत को भी तुम ,
कैसे झुठला पाओगे ,
मेरी चाहत की ऊँचाई ,
तुम कभी न छू पाओगे ,
उस आग की तपिश में ,
खुद ही झुलसते जाओगे |
आशा
27 अप्रैल, 2010
बंधन जाति का
खिली कली बीता बचपन
जाने कब अनजाने में
दी दस्तक दरवाज़े पर
यौवन की प्रथम सीढ़ी पर
जैसे ही कदम पड़े उसके
आँखों ने छलकाया यौवन
हर एक अदा में सम्मोहन
वह दिल में जगह बना बैठी
सजनी बन सपने में आ बैठी |
धीरे-धीरे कब प्यार हुआ
साथ जीने मरने का
जाने कब इकरार हुआ
छिप-छिप कर आना उसका
मन के सारे भेद बता कर
जी भर कर हँसना उसका
निश्छल मन चंचल चितवन
आनन पर लहराती काकुल
मन में कर देती हलचल |
जब विवाह तक आना चाहा
जाति प्रथा का पड़ा तमाचा
ध्वस्त हुए सारे सपने
कोई भी नहीं हुए अपने |
माँ बाबा ने उसे बुला कर
मुझसे दूर उसे ले जा कर
एक जाति बंधु से ब्याह रचाया
उसका मुझसे नाता तुड़वाया
मुझ में ऐसी क्या कमियाँ थीं
मै तो समझ नहीं पाया |
जाति में मन चाहा वर
भाग्यशाली ही पाता है
अक्सर यह लाभ
कुपात्र ही ले जाता है
वह थोड़ा बहुत कमाता था
बहुत व्यस्त है दर्शाता था
ऐसा भी कोई गुणी नहीं था
जिस कारण अकड़ा जाता था
सारी हदें पार करता था
बेबसी पर खुश होता था |
पहले तो वह झुकती जाती थी
हर बार पिता की इज्जत का
ख्याल मन में लाती थी
फिर घुट-घुट कर जीना सीख लिया
समाज से डरना सीख लिया |
मैं भी दस-दस आँसू रोया
फिर दुनियादारी में खोया
एक लम्बा अरसा बीत गया
यादों को मन में दफना कर
उन पर पर्दा डाल दिया
अब जीवन चलता पटरी पर
कहीं नहीं भटकता पल भर |
तेज हवा की आँधी सी वह
मेरे सामने खड़ी हुई थी
बहुत उदास आँखों में आँसू
खंडित प्रतिमा सी लग रही थी
उसके आँसू देख न पाया
जज्बातों को बस में करके
उसका हाल पूछना चाहा
पहले कुछ न बोल पाई
फिर धीरे से प्रतिक्रिया आई
ऐसा कैसा जाति का बंधन
जो बेमेल विवाह का कारक बन
जीने की ललक मिटा देता
कितनों का जीवन हर लेता |
जब उसकी व्यथा कथा को जाना
मनोदशा को पहचाना
नफरत से मन भर आया
विद्रोही मन उग्र हुआ
जाति प्रथा को जी भर कोसा |
आशा
जैसे ही कदम पड़े उसके
आँखों ने छलकाया यौवन
हर एक अदा में सम्मोहन
वह दिल में जगह बना बैठी
सजनी बन सपने में आ बैठी |
धीरे-धीरे कब प्यार हुआ
साथ जीने मरने का
जाने कब इकरार हुआ
छिप-छिप कर आना उसका
मन के सारे भेद बता कर
जी भर कर हँसना उसका
निश्छल मन चंचल चितवन
आनन पर लहराती काकुल
मन में कर देती हलचल |
जब विवाह तक आना चाहा
जाति प्रथा का पड़ा तमाचा
ध्वस्त हुए सारे सपने
कोई भी नहीं हुए अपने |
माँ बाबा ने उसे बुला कर
मुझसे दूर उसे ले जा कर
एक जाति बंधु से ब्याह रचाया
उसका मुझसे नाता तुड़वाया
मुझ में ऐसी क्या कमियाँ थीं
मै तो समझ नहीं पाया |
जाति में मन चाहा वर
भाग्यशाली ही पाता है
अक्सर यह लाभ
कुपात्र ही ले जाता है
वह थोड़ा बहुत कमाता था
बहुत व्यस्त है दर्शाता था
ऐसा भी कोई गुणी नहीं था
जिस कारण अकड़ा जाता था
सारी हदें पार करता था
बेबसी पर खुश होता था |
पहले तो वह झुकती जाती थी
हर बार पिता की इज्जत का
ख्याल मन में लाती थी
फिर घुट-घुट कर जीना सीख लिया
समाज से डरना सीख लिया |
मैं भी दस-दस आँसू रोया
फिर दुनियादारी में खोया
एक लम्बा अरसा बीत गया
यादों को मन में दफना कर
उन पर पर्दा डाल दिया
अब जीवन चलता पटरी पर
कहीं नहीं भटकता पल भर |
तेज हवा की आँधी सी वह
मेरे सामने खड़ी हुई थी
बहुत उदास आँखों में आँसू
खंडित प्रतिमा सी लग रही थी
उसके आँसू देख न पाया
जज्बातों को बस में करके
उसका हाल पूछना चाहा
पहले कुछ न बोल पाई
फिर धीरे से प्रतिक्रिया आई
ऐसा कैसा जाति का बंधन
जो बेमेल विवाह का कारक बन
जीने की ललक मिटा देता
कितनों का जीवन हर लेता |
जब उसकी व्यथा कथा को जाना
मनोदशा को पहचाना
नफरत से मन भर आया
विद्रोही मन उग्र हुआ
जाति प्रथा को जी भर कोसा |
आशा
26 अप्रैल, 2010
क्षणिका
ये आँसू सरल नहीं होते ,
आँखें तक नम नहीं करते ,
इनके लिये सौहार्द्र चाहिये ,
मन की पीड़ा का ताप चाहिये ,
तभी कहीं ये बह पायेगे ,
बाढ़ नदी की बन पायेंगे|
आशा
आँखें तक नम नहीं करते ,
इनके लिये सौहार्द्र चाहिये ,
मन की पीड़ा का ताप चाहिये ,
तभी कहीं ये बह पायेगे ,
बाढ़ नदी की बन पायेंगे|
आशा
23 अप्रैल, 2010
नन्हा सा बीज
नन्हा सा बीज कहीं से आया
नदिया तट पर पैर जमाया
प्रकृती नटी की महिमा देखो
धरती पर हरियाली लाया
बहती नदिया की तीव्र गति
माटी बहा कर ले जाती
यदि वृक्ष का साथ नहीं पाती
कारण कटाव का बन जाती
तट पर पेड़ों की गहरी मूल
कस कर अपने प्रेम पाश में
माटी को जकड़े समूल
नदिया तट तोड़ नहीं पाती
मर्यादा छोड़ नहीं पाती
धरती क्षय होने से बच जाती
नदिया उथली ना हो पाती
पेड़ों की महिमा बहुत अधिक
इतना सा संदेशा लाती
बड़े वृक्ष घनेरी छाया
कितनों का बनते हैं सहारा
पंछी का बसेरा बनते
पंथी को छाया देते हैं
फल फूल और औषधियों से
मन में सुकून भर देते हैं
सब को खुश कर देते हैं
प्रकृति नटी का विशिष्ट नज़ारा
हरियाली व नदी का किनारा
मन उसमें रमता जाता
नन्हा सा बीज बन वृक्ष बड़ा
दिल में घर करता जाता |
आशा
21 अप्रैल, 2010
सच्चा मित्र
केवल जज्बातों में बह कर ,
उसको तुम क्या जानोगे ,
यदि वक्त पर आया काम ,
तभी उसे पहचानोगे ,
दुर्योधन ने निजी स्वार्थ वश ,
कर्ण को अपना मित्र बनाया ,
अंग देश का दिया राज्य ,
पर सच्चा मित्र ना बन पाया ,
दुनिया में सब कुछ मिलता है ,
पर असली मित्र ना मिल पाता ,
वह बहुत भाग्यशाली है ,
जो सच्चे दोस्त को पा जाता ,
अच्छे के सारे साथी हैं ,
अपना प्यार जताते हैं ,
यदि बुरा वक्त आ जाये ,
सब कन्नी काट चले जाते हैं ,
बुरे समय में जो अपनाये ,
ग़लत सही की पहचान कराये ,
सही राह पर ले कर आये ,
सच्चा मित्र वही कहलाये ,
हर अच्छे और बुरे समय में ,
मन से पूरा साथ निभाये ,
सरल सहज और पारदर्शी हो ,
मन की भाषा पढ़ना चाहे,
पर्दे की ओट से भी ,
जो सहज पहचाना जाये ,
कृष्ण सुदामा की मिसाल बन ,
तुम पर अपना सर्वस्व लुटाये ,
ऐसे मित्र की तलाश में ,
ज़ज्बातों का काम नहीं ,
समय बहुत प्रबल होता है
इसका तुम्हें अहसास नहीं
जिस दिन सच्चा मित्र मिलेगा
मन से तुमको अपनायेगा
सच्चा मित्र वही होगा
जो सही राह दिखलायेगा |
आशा
उसको तुम क्या जानोगे ,
यदि वक्त पर आया काम ,
तभी उसे पहचानोगे ,
दुर्योधन ने निजी स्वार्थ वश ,
कर्ण को अपना मित्र बनाया ,
अंग देश का दिया राज्य ,
पर सच्चा मित्र ना बन पाया ,
दुनिया में सब कुछ मिलता है ,
पर असली मित्र ना मिल पाता ,
वह बहुत भाग्यशाली है ,
जो सच्चे दोस्त को पा जाता ,
अच्छे के सारे साथी हैं ,
अपना प्यार जताते हैं ,
यदि बुरा वक्त आ जाये ,
सब कन्नी काट चले जाते हैं ,
बुरे समय में जो अपनाये ,
ग़लत सही की पहचान कराये ,
सही राह पर ले कर आये ,
सच्चा मित्र वही कहलाये ,
हर अच्छे और बुरे समय में ,
मन से पूरा साथ निभाये ,
सरल सहज और पारदर्शी हो ,
मन की भाषा पढ़ना चाहे,
पर्दे की ओट से भी ,
जो सहज पहचाना जाये ,
कृष्ण सुदामा की मिसाल बन ,
तुम पर अपना सर्वस्व लुटाये ,
ऐसे मित्र की तलाश में ,
ज़ज्बातों का काम नहीं ,
समय बहुत प्रबल होता है
इसका तुम्हें अहसास नहीं
जिस दिन सच्चा मित्र मिलेगा
मन से तुमको अपनायेगा
सच्चा मित्र वही होगा
जो सही राह दिखलायेगा |
आशा
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