माँ है धरती
और पिता नीलाम्बर
दूर क्षितिज में
मिलते दौनों
सृष्टि उपजी है दौनों से |
धरा पालती जीवों को
पालन पोषण उनका करती
खुद दुखों तले दबी रहती
उफ नहीं करती |
पर जब क्रोध आता उसको
कम्पित भूकंप से हो जाती
कभी ज्वालामुखी हो
फूटती मुखर होती |
पर फिर धीर गंभीर हो जाती
क्यूं कि वह पृथ्वी है
अपना कर्तव्य जानती है
उसी में व्यस्त हो जाती है |
आकाश निर्विकार भाव लिए
उसे निहारता रहता है
पर वह भी कम यत्न नहीं करता
सृष्टि को सवारने के लिए
जग जगमगाता है
उसी के प्रकाश से |
हर जीव के विकास में
होता पूर्ण सहयोग दौनों का
रात्री में चाँद सितारे
देते शीतलता मन को
और विश्रान्ति के उन पलों को
कर देते अधिक सुखद |
दौनों ही संसार के
संचालन में जुटे हैं
गाड़ी के दो पहियों की तरह
एक के बिना
दूसरा लगता अर्थ हीन सा
अधूरा सा
हैं दौनों जीवन के दाता
पञ्च तत्व के निर्माता
है ना जाने उनका
नाता जाने कब का |
आशा
प्रस्तुतकर्ता आशा पर २:०६ अपराह्न
SAJAN.AAWARA ने कहा…
ANMOL , SATAY KA GYAN KRATI EK KAVITA. . . . . . JAI HIND JAI BHARAT
९ मई २०११ १:०३ अपराह्न टिप्पणी हटाएँ">
विजय रंजन ने कहा…
माँ है धरती
और पिता नीलाम्बर
दूर क्षितिज में
मिलते दौनों
सृष्टि उपजी है दौनों से |
Bahut sateek Aasha ji...ek dusre ke bina jeevan ki gari nahi chalti
९ मई २०११ १:१२ अपराह्न टिप्पणी हटाएँ">
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