मंथर गति से चलती
गज गामिनी सी
वह लगती ठंडी बयार सी
जो सिहरन पैदा कर जाती |
कभी अहसास दिलाती
आँखों में आये खुमार का
मन चंचल कर जाती
कभी झंझावात सी |
ना है स्वयम् स्थिर मना
ना चाहती कोई शांत रहे
पर मैं तो कायल हूँ
उसके आकर्षक व्यक्तित्व का |
है वह बिंदास और मुखर
क्या चाहती है मैं नहीं जानता
पर चंचल हिरनी सी
चितवन यही
जहां भी ठहर जाती है
एक भूकंप सा आ जाता है
जाने कितने दिलों में
बजती शहनाई का
दृश्य साकार कर जाता है |
उसका यही रूप
सब को छू जाता है
हर बार महकते गुलाब की
झलक दिखा जाता है |
मन के किसी कौने में
उसका विस्तार नजर आता है
है इतनी प्यारी कि
उसे भुला नहीं पाता |
यही सोच था
बरसों से मन में
जो सपनों में साकार
होता नजर आता |
आशा