था दिन हाट का
कुछ सजे संवरे आदिवासी
करने आए थे बाजार
थीं साथ महिलाएं भी |
मैं दरवाजे की ओट से
देख रही थी हाट की रौनक
उन्हें जैसे ही पता चला
कुछ मिलनें आ गईं
पहले सोचा क्या बात करू
फिर लोक गीत सुनना चाहे
उनकी मधुरता लयबद्धता
आज तक भूल नहीं पाई|
थे गरीब पर मन के धनी
गिलट के जेवर ही काफी थे
रूप निखारने के लिए
केश विन्यास की विशिष्ट शैली
मन को आकृष्ट कर रही थी |
धीरे से वे पास आईं
घर आने का किया आग्रह
फिर बोलीं जरूर आना
स्वीकृति पा प्रसन्न हो चली गईं |
प्रातः काल हुए तैयार
कच्ची सड़क पर उडाती धूल
गराड पर चलती हिचकोले खाती
आगे बढ़ने लगी जीप|
जब मुखिया के घर पहुंचे
हतप्रभ हुए स्वच्छता देख
था झोंपडा कच्चा
पर चमक रहा था कांच सा |
द्वार सजा मांडनों से
भीतरी दीवार सजी
तीर कमान और गोफन से
मक्का की रोटी और साग
साथ थी छाछ और स्नेह का तडका
वह स्वाद आज तक नहीं भूली |
दिन ढला शाम आई
फिर रात में चांदनी नें पैर पसारे
सज धज कर सब आए मैदान में |
ढोल की थाप पर कदम से कदम मिला
गोल घेरे में मंथर गति से थिरके
नृत्य और गीतों का समा था ऐसा
पैर रुकने का नाम न लेते थे |
एक आदिवासी बाला ने मुझे भी
नृत्य में शामिल किया
वह अनुभव भी अनूठा था
रात कब बीत गयी पता ही नहीं चला |
सुबह हुई कुछ बालाओं नें
अपनी विशिष्ट शैली में
मेरा केश विन्यास किया
कच्चे कांच की मालाओं से सजा
काजल लगाया उपहार दिए
वह साज सज्जा आज भी भूली नहीं हूँ
वह प्यार वह मनुहार
आज भी बसी है यादों में |
अगली हाट पर
भिलाले आदिवासी भी आए
बहुत आग्रह से आमंत्रित किया
पर हम नहीं जा पाए
एक अवसर खो दिया उनको जानने का
उनका प्रेम पाने का |
आशा