कभी लगती पुष्पों की सेज सी
कभी डगर काँटों की
कभी पेंग बढाते झूले सी
ऐसी ही है जिंदगी |
देखते ही देखते
यूं ही गुजर जाती है
कैसे करें भरोसा इस पर
कभी भी साथ छोड़ जाती है |
जो भी इसे समझ पाया
सामंजस्य स्थापित कर पाया
वही अपने हिसाब से
अपने तरीके से जी पाया |
जिसने इसे नहीं समझा
इसका मोल नहीं आंका
इसे भोग नहीं पाया
वह भी तो इससे जुदा हुआ |
किसी ने बेवफा कहा इसे
कुछ ने मुक्ति मार्ग का नाम दिया
जाने कितनों ने इसे उपकार कहा
प्रभु की अनमोल देन समझा |
वह भी ऐसी
जो जन्म के साथ मिली हो
फिर वह बेवफा कैसे हो
जिसमें वफा ही भरी हो |
संगी साथी सब छूट जाते हैं
कभी स्मृतियों में
खोते जाते है
कभी विस्मृत भी हो जाते हैं |
है जिंदगी ऐसा अनुभव
जो दौनों ही पाते हैं
कुछ याद रखते हैं
कई भूल जाते हैं |
आशा
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