बहुत पुरानी बात है |राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक ब्राह्म
ण रहता था |उसका नाम ॠश्य शर्मा था |उसके एक पुत्र हुआ पर वह उसको खिला भी न सका और अकाल मृत्यु को प्राप्त होगया |
अब बच्चे के लालनपालन की जिम्मेदारी उसकी पत्नी पर आ गयी |वह आर्थिक रूप से बहुत कमजोर थी और भिक्षा मांगकर अपना औरअपने बच्चे का भरण पोषण करती थी |
वह रोज गोबर से बनी गणपति की प्रतिमा का पूजन करती थी और बहुत श्रद्धा रखती थी |एक दिन बच्चे ने उस प्रतिमा को खिलोना समझ कर अपने गले में लटका लिया और खेलता खेलता बाहर निकल गया |
एक कुटिल कुम्हार की बहुत दिनों से उस पर नजर थी |उसने बच्चे को पकड़ कर जलते हुए आवा में डाल दिया |इधर माता का पुत्र वियोग में बुरा हाल था |वह गणपति का पूजन कर विलाप करने लगी और पुत्र की रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगी |
दूसरे दिन जब कुम्हार ने आवा खोला तब उसने बच्चे को घुटने घुटने पानी में खेलते हुए पाया |कुम्हार को बहुत मानसिक ग्लानि हुई |उसे अपनी गलती का अहसास हो गया था |वह रोता रोता राजा के पास पहुंचा और अपने गुनाह को कबूल किया |
वह बोला ,"राजन मुझे कुछ मिट्टी के बर्तन जल्दी से पकाने थे आवा जलने का नाम न लेता था |एक तांत्रिक ने बताया कि यदि किसी बच्चे की बलि गुप्त रूप से चढ़ाओगे तो तुम्हारी समस्या का निदान हो जाएगा |तभी से बालक तलाश रहा था और विधवा के इस बच्चे को आवा में ड़ाल दिया था "|पर जब सुबह बालक को आवा में खेलते देखा तो भय के मारे यहाँ आ गया "|
राजा बहुत न्याय प्रिय था उसने अपने आमात्य को भेज कर सारी सत्यता की जानकारी प्राप्त की और ब्राह्मणी को बुला कर बच्चा उसे सौंप दिया |पर वह आश्चर्य चकित था कि बालक जलने की जगह पानी में कैसे खेल रहा था |बच्चे की माँ से प्रश्न किया कि क्या कोई जादू टोना किया था जो बालक पर आंच तक नहीं आई |
अपने बच्चे को पा कर ब्राह्मणी बहुत प्रसन्न थी और राजा को बहुत बहुत आशीष देते हुए बोली "हे राजन मैंने कोई जादू नहीं किया बस रोज विघ्न हरता सिद्धि विनायक की सच्चे मन से पूजा करती हूँ और चतुर्थी का व्रत रखती हूँ |शायद उसी का फल आज मुझे मिला है "
राजा बहुत अभिभूत हुआ और ब्राह्मणी से कहां ,"तुम बहुत पुण्यात्मा और धन्य हो तुमने हमें सही राह दिखाई है अब मैं और मेरी प्रजा भी सिद्धि विनायक समस्त विघ्न के हरता का विधिवत पूजन अर्चन करेंगे "
तभी से गणेश चतुर्थी का व्रत किया जाता है | यह समस्त सिद्धि देने वाला व्रत है |
आशा