आदित्य की प्रथम किरण सा
कितना सुखद सानिध्य
और तुम्हारा स्नेहिल स्पर्श
कर जाता अभिमंत्रित
मन मयूर को\
व्योम में सूर्य बिम्ब से
अरुणिम अधर
प्रमुदित करते
मधुर मुस्कान से
फूल झरते
अदभुद भाव लिए मुख पर
कर जाती बिभोर
टीस सी होने लगती जब
कोई छूना चाहता तुम्हें
चाहत है यही
भूले से भी न छुए किसी का
साया भी तुम्हे
सृष्टि की अनमोल कृति हो
ऐसी ही रहो |
आशा