पर बाहर होता अनाचार
घर में अनुशंसा इसकी
पर उन्मुक्त आचरण घर के बाहर
नैतिकता की बातें अब
किताबों में सिमट कर रह गईं ||
मन व्यथित होता देख
दोहरे आचरण वालों को
तभी खड़े हैं नैतिक मूल्य
विधटन के द्वार पर |
कितने ही क़ानून बने
पर पालन नहीं होता
हर नियम की अवज्ञा का
तोड़ निकल आता है
शातिर बच ही जाते हैं
बचने का जश्न मनाते हैं |
यदा कदा पहले भी
ऐसे किस्से होते थे
पर संख्या उनकी थी नगण्य
पर संख्या उनकी थी नगण्य
इतनी आजादी भी न थी
रिश्तों की थी समझ
अनाचार से डरते थे |
आधुनिकता की दौड में
नैतिकता का हुआ ह्रास
पाश्चात्य सभ्यता सर चढ़ बोली
पाश्चात्य सभ्यता सर चढ़ बोली
हुआ मानवता का उपहास |
कलुषित आचरण में लिप्त
फैलाते गन्दगी समाज में
शायद पशु भी हैं इनसे अच्छे
मन से संयत होते हैं |
शायद पशु भी हैं इनसे अच्छे
मन से संयत होते हैं |
देती शिक्षा सही आचरण
जागरूप होता जनमन
साथ करो उनलोगों का
जिनका नहीं दोहरा चलन
हो दूर बुराई से
वही करें जो उचित लगे
जिनका नहीं दोहरा चलन
हो दूर बुराई से
वही करें जो उचित लगे
यही बात यदि युवा समझेते
गलत काम कोई ना करते |
आशा