अनाज यदि मंहगा हुआ ,तू क्यूं आपा खोय |
मंहगाई की मार से बच ना पाया कोय ||
कोई भी ना देखता , तेरे मन की पीर |
हर वस्तु अब तो लगती ,धनिकों की जागीर ||
रूखा सूखा जो मिले ,करले तू स्वीकार |
उसमें खोज खुशी अपनी ,प्रभु की मर्जी जान ||
पकवान की चाह न हो ,ना दे बात को तूल |
चीनी भी मंहगी हुई ,उसको जाओ भूल ||
वाहन भाडा बढ़ गया , इसका हुआ प्रभाव |
भाव आसमा छु रहे ,लगता बहुत अभाव ||
इधर उधर ना घूमना ,मूंछों पर दे ताव |
खाली यदि जेबें रहीं ,कोइ न देगा भाव ||
भीड़ भरे बाजार में ,पैसों का है जोर |
मन चाहा यदि ना मिला , होना ही है बोर ||
आशा