सारे पखेरू उड़ गए
हुआ घोंसला खाली
ठूंठ अकेला रह गया
छाई ना हरियाली
आँगन सूना देख
मेरा मन क्यूं घबराए ना
क्यूं गाऊँ मैं गीत
मुझे कुछ भी भाए ना
सभी व्यस्त अपने अपने में
समय का अभाव बताते
रहते अपनी दुनिया में
उनकी ममता जागे ना
मैं अकेली रह गयी
अक्षमता का बोध लिए
पर डूबी माया मोह में
यह बंधन छूटे ना
यह जन्म तो बीत चला
तेरी पनाह में
है अटूट विशवास तुझ पर
पर मन स्थिर ना रह पाता
अभी है यह हाल
आगे न जाने क्या होगा |