एक चिड़िया नन्हीं सी
टुवी टुवी करती
प्रसंनमना उड़ती फिरती
डालियों पर
एक से दूसरी पर जाती
लेती आनंद झूलने का
एकाएक राह भूली
झांका खिड़की से
भ्रमित चकित
कक्ष में आई
चारो ओर दृष्टिपात करती
पहले यहाँ वहां बैठी
सोच रही वह कहाँ आ गयी
दर्पण देख रुकी
टुवी टुवी करती
मारी चोंच उस पर
आहत हो कुछ ठहरी
फिर वार पर वार किये
मन ने सोचा
लगता कोइ दुश्मन
जो उसे डराना चाहता
पर यह था केवल भ्रम
उसके अपने मन का
यूं ही आहत हुई
जान नहीं पाई
कोई अन्य न था
था उसका ही अक्स
जिससे वह जूझ रही थी
बिना बात यूं ही
भयभीत हो रही थी |
आशा