कुण्डली (१)
क्या यही गलत नहीं ,सागर से की आस
प्यासा प्यासा ही रहा, बुझ ना पाई प्यास
बुझ ना पाई प्यास, सुनो हे बंधू मेरे
वह नमक कहाँ ले जाए ,कहाँ से लाए मिठास |
क्या यही गलत नहीं ,सागर से की आस
प्यासा प्यासा ही रहा, बुझ ना पाई प्यास
बुझ ना पाई प्यास, सुनो हे बंधू मेरे
वह नमक कहाँ ले जाए ,कहाँ से लाए मिठास |
कड़वा कड़वा थू करे ,मीठा सब जग खाय
है जगत की रीत यही ,मीठा अधिक सुहाय
मीठा अधिक सुहाय ,सुनो हे भ्राता मेरे
अति इसकी जो भी करे ,बीमारी बढ़ जाय |
प्यार बढाया आपने ,सौदा किया न कोय
दिन दूना फूला फला ,रोक न पाया कोय
रोक न पाया कोय सोचो किसने की भूल
विसराना ना उसे , ना देना बात को तूल |
आशा