शीशा टूटा
किरच किरच बिखरा
हादसा ऐसा हुआ
तन मन घायल कर गया
तन के घाव भरने लगे
समय के साथ सुधरने लगे
मन के घावों का क्या करे
जिनका कोई इलाज नहीं
यूं तो कहा जाता है
समय के साथ हर जख्म
स्वयं भरता जाता है
खून का रिसाव थम जाता है
पर आज जब जीवन की
शाम उतर
आई है
सब यथावत चल रहा है
पर उन जख्मों में
कोई
परिवर्तन नहीं
रह रह कर
टीस उभरती है
बेचैनी बढ़ती जाती है
उदासी घिरती जाती है |