अपनों से जब तक
बिछुड़ा न था
अपूर्व आभा लिए था
आकृष्ट सभी को करता |
महक चहु दिश फैलाता
अहसास अपने होने का
खोने न देता था
क्यूं कि वह सुरक्षित था |
जब डाली से बिछुड़ा
गुलदस्ते में सजा
भेट प्रेम की चढ़ा
कुम्हलाया, ठुकराया गया
सब कुछ बिखर कर रह गया |
अब ना वह था
ना ही महक उसकी
सब कुछ अतीत में
सिमट कर रह गया |
थी जगह धरती उसकी
जीवन धुँआ धुँआ हुआ
गुबार उठा ऊपर चढा
अनंत में समा गया |
अब न था अस्तित्व
ना खुशबू ना ही आकर्षण
बस थी धुंधली सी याद
उसके क्षणिक जीवन की |