06 जनवरी, 2014

स्वप्न (क्षणिका )

शाम ढली निशा ने पैर पसारे
हम तब भी स्वप्नों से न हारे
 किसी न किसी में खोए रहे
सुबह कब हुई जान न पाए |
आशा

03 जनवरी, 2014

भावनाओं का सैलाव

 भावनाओं  का सैलाव
 कहाँ ले जाएगा 
भेद अपने पराए में
 कर न पाएगा |
प्यार के सरोवर में
 तैरेगा कैसे 
किनारा है बहुत दूर
 पहुँच न पाएगा |
ये ही मन 
 अस्थिर करती हैं
कोइ नियंत्रण
नहीं इन पर |
बेचैन मन कब तक
दे साथ इनका
कहीं उलझ  न जाए
शिकारी के जाल में|
वह तो घात लगाए
बैठा होगा
जाने कब कोइ फँस जाए
उसके जाल में |
है कठिन
 नियंत्रण उन पर
पर सावधानी भी
 तो जरूरी है |
जब तैरना नहीं आता
क्या फ़ायदा
सरोबर में उतरने का
ज़रा सी भूल में
जीवन शेष हो जाएगा |
आशा |


02 जनवरी, 2014

जीने न दे---







जीने न देते
बीते कल के साए
आहत हूं मैं |
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है कलाकार
रंग मंच पर छा
ना छोड़ आस |

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कर प्रकाश
मोम बत्ती रात में
हम हें साथ |
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साथ न आना
धुंआ बन रहना
आसमान में |
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यह पतंग
प्रेम रंग में रंगी
उड़े व्योम में |
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 यह दर्पण

दामन सच्चाई का

 झूट न बोले 





सुस्वागतम 
ए नव वर्ष आज
खिले सुमन |
यह आइना
 चिढ़ाता है मुझको
मुझे जाने ना |
  
जश्न ही मना 
प्रातः से संजा तक 
ना कर काम |
आशा

01 जनवरी, 2014

30 दिसंबर, 2013

नया कुछ करना है

सुस्वागतम
ए नव वर्ष आज 
खिले सुमन

नव बर्ष शुभ और मंगलमय हो |


नव रस में भीगा
नव वर्ष आने को है
नया कुछ करना है
आने वाले के स्वागत में |
आगे कदम बढ़ाना
जीवन से सीखा है
सुख दुःख होते क्षणिक
उनको बिसराना है |
कई अनुभव किये संचित
बीते वर्षों में
उनको ही आधार मान
 कुछ विशिष्ट  करना है |
जो भी हो नवल
 प्रेरक प्रोत्साहक
उसे सहेज कर
 प्रसारित  करना है |
यह अनुभवों की धरोहर
कुछ नया कराएगी
नवरसों का स्वाद
सब में जगाना है |
आने को है नया साल
अभिनव प्रयोग करना है
नव वर्ष का अभिन्दन
सब भूल कर करना है |
आशा

29 दिसंबर, 2013

खिलती धूप

उड़े पखेरू 
पंख फैला पक्षी सा 
मन उड़ता |

खिलती धुप 
दमकता चेहरा 
प्यारा लगता |


आशा

27 दिसंबर, 2013

हाइकू (४)

(१)
फूल भ्रमर 
प्यार का इज़हार
या उपकार |
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उपकार का
यदि सिलसीला  हो
 कृपण न हो
 (२)
आँखे बरसीं
पहली बारिश सी 
सूखा न रहा |
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रहा अधूरा 
जीवन तेरे बिन 
सूना ही रहा 
(३)
सूना जीवन 
बेरंग तेरे बिना
कुछ भाए ना |
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भाए ना यह 
रंग भरी ठिठोली 
तुम आजाना |
(4)
बिखरी यादें
समेटने की चाह
है गलत क्या|
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क्या बिगड़ता
यदि समझी होती
मन की बात |
(५)
कठिन राह
पहुँच न पाऊंगा
हो चाँद तुम |
(५)
बहती जाती  
नौका मझधार में  
हो पार कैसे |
बहता जल
है तरंगित मन
हरीतिमा सा |
आशा