निशा के आगोश में
स्वप्न सजते हैं
अनदेखे अक्स
पटल पर उभरते हैं
क्या कहते हैं ?
याद नहीं रहते
बस
सरिता जल से
कल कल बहते हैं |
यही चित्र मधुर स्वर
मन को बांधे रखते हैं
प्रातः होते ही
सब कुछ बदल जाता है
हरी दूब और सुनहरी धूप
ओस से नहाए वृक्ष
कलरव करते पंख पखेरू
सब कहीं खो जाते
रह जाता ठोस धरातल
कर्तव्यों का बोझ लिए
कदम आतुर चौके में जाने को
दिन के काम दीखने लगते
होते स्वप्न तिरोहित |
आशा