15 अप्रैल, 2014

अर्थ अनेक



एक शब्द अर्थ अनेक
सब के विश्लेषण सटीक    
जब सोचा समझा उपयोग किया
कितने ही पीछे छूट गए |
शब्द कोष में खोजा उनको
एक कल्पना की  मैंने
नया साहित्य सृजन करने की
उन्हें उचित स्थान देने की |
बड़े साहित्यकारों की तरह
कुछ का उपयोग किया भी
पर खरा न उतर पाया 
उनको सम्मान देने में |
वही शब्द भाषाएँ अनेक
सब में अर्थ अलग अलग
कुछ भी तो समान नहीं
खोता गया शब्दों के समुन्दर में |
पर जो चाहा वैसी रचना
ना कल बनी न आज बन पाई
मैं उलझा रहा नए पुराने
 शब्दो के जाल बांधने में  |
अभी भी बेकली छाई है
मन चाहता तराशना
शब्दों के समूह को
नया रूप देने को |
आशा

13 अप्रैल, 2014

कुसुम



महकती चहकती
निशा सुन्दरी श्रंगार करती
सध्य खिलते सौरभ बिखेरते
डाली पर सजे पुष्पों से |
भीनी खुशबू जब आती
उसी और खींच ले जाती
पवन से हिलती डालियाँ
श्वेत चादर सी बिछ जाती  
प्रातः वृक्ष के नीचे |
सुनहरी धुप के सान्निध्य से
कुम्हलाते पर दुखी न होते
अपने सुख दुःख भूल
जीवन जीते मस्ती से |
उनकी जीने की कला
तनिक भी यदि सीखी होती
जितनी  साँसे  मिलतीं
खुशी खुशी जी लेते
उनका भरपूर उपयोग करते |
आशा

10 अप्रैल, 2014

एक मतदाता

यह रचना एक सच्चे किस्से पर आधारित है |जब लोग अपना वोट मतदान पेटी में डाला करते थे |

एक प्रत्याशी आया
बड़े प्रलोभन लाया
टेम्पो में सब को लिया
बूथ तक ले आया |
तुमने वोट दिया
 मैंने भी वोट दिया
एक महान कार्य
 सम्पन्न किया |
एक सीधा साधा प्राणी
बड़े उत्साह से आया
लिस्ट में नाम खोज
बूथ में प्रवेश पाया |
स्याही लगवाई
जोर से गुहार लगाई
वोटिग मशीन
कहाँ है भाई |
चेहरा खुशी से
 दमकता था
जब एक साथ
 कई बटन दबाए |
उत्सुक  प्रत्याशी
पूछ बैठा
किसको वोट दिया
जवाब  मिला
सब को खुश किया |
आग बबूला प्रत्याशी
अपना आपा खो बैठा
घूंसे लात जमाए
वहीं छोड़ कर चल दिया |
चोट खाया वोटर
 सोच में डूबा
सब को खुश किया उसने
क्या गलत किया |
आशा

07 अप्रैल, 2014

वह क्या जाने पीर





वह क्या जाने पीर हार की
जो कभी हारा ही नहीं
आहत मन ही जानता है
महत्व चोट के अहसास की
सड़क से पत्थर
तभी हटाया जाता है
जब कोइ ठोकर खाता है
स्वस्थ शरीर उत्फुल्ल मन
तभी होता है जब कभी
अस्वस्थता का फैलता जहर
महसूस किया हो
बचने के लिए उससे
कई प्रयत्न किये हों |
आशा

04 अप्रैल, 2014

शब्दबाण



तरकश से निकला तीर
 बापिस नहीं आता
हृदय बींधता जब
खोता जाता संयम |
भूलना भी चाहता पर
धैर्य साथ न देता
घाव अधिक गंभीर
नासूर होता जाता |
शब्द चुभ कर रह जाते
चुभन शूल की देते
शेष रहे जीवन की
शान्ति भंग कर जाते |
कभी याद आता फेंका गया
वह मखमल में लिपटा जूता
जिसे भुलाना संभव नहीं
 केवल पीर ही देता |
वह मृदुभाषी पहले भी न था
अपेक्षा भी नहीं थी
पर यह कैसे भूल गया
 कहाँ लगेगा शब्दबाण
कितनों को आहात करेगा
प्रतिशोध का कारण तो न होगा ?