14 मई, 2014
12 मई, 2014
11 मई, 2014
चुनाव आज का
थमा चुनाव प्रचार हुई शान्ति अपार
अब मोदी ना राहुल ना ही केजरीवाल
कटाक्षों ने हद पार की
सब के मुंह पर कीचड़ उछला |
इस चुनाव में पार्टी गौण हुई
व्यक्तिवाद हावी हुआ
भाई भतीजा परिवार वाद भी दिखा
दो नावों में पैर रखा |
कुछ बातें होती अन्तरंग
धर में भी शोभा न देतीं
सडकों पर उछाली गईं
मर्यादा की सीमा पार कर गईं |
मान हनन चरित्र हनन
सब कुछ खुले आम हुआ
बचा क्या रह गया
अपशब्दों का उपयोग हुआ |
पहले भी चुनाव होते थे
जश्न सी रौनक रहती थी
वादे पार्टी करती थी व्यक्ति नहीं
नेता अभिनेता न था |
आशा
09 मई, 2014
कितना दुःख होता है
मन का मान नहीं होता
जरा सी बात होती है
पर अनुमान नहीं होता ।
हृदय विकल होता है
विद्रोह का कारण बनता है
सहनशक्ति साथ छोड़ती
उग्र रूप दीखता है
विद्रोही मन नहीँ सोचता
जितना भी उत्पात मचेगा
खुद की ही अवमानना होगी
जीना अधिक कठिन होगा ।
पर फिर भी लगता आवश्यक
गुबार जो घुमड़ता मन में
उससे धुंआ ना उठें
वहीं का वहीं दफन हो जाए ।
आशा
जीना अधिक कठिन होगा ।
पर फिर भी लगता आवश्यक
गुबार जो घुमड़ता मन में
उससे धुंआ ना उठें
वहीं का वहीं दफन हो जाए ।
आशा
07 मई, 2014
मकसद कहाँ ले जाएगा
आज अपनी ८५०वी रचना प्रस्तुत कर रही हूँ |आशा है अच्छी लगेगी |
बेकल उदास बेचैन राही
चला जा रहा अनजान पथ पर
नहीं जानता कहाँ जाएगा
मकसद कहाँ ले जाएगा |
चलते चलते शाम हो गयी
थकान ने अब सर उठाया
सड़क किनारे चादर बिछा कर
रात बिताने का मन बनाया |
अंधेरी रात के साए में
नींद से आँख मिचोनी खेलते
करवटें बदलते बदलते
निशा कहीं विलुप्त हो गई |
समय चक्र बढ़ता गया
सुनहरी धूप लिए साथ
आदित्य का सामना हुआ
सूर्योदय का भास् हुआ |
पाकर अपने समक्ष उसे
अचरज में डूबा डूबा सा
अधखुले नयनों से उसे
देखता
ही रह गया |
खोजने जिसे चला था
खोजने जिसे चला था
जब पाया उसे बाहों में
बेकली कहीं खो गयी
अपूर्व शान्ति चेहरे पर आई
मकसद पूरा हो गया |
आशा
सदस्यता लें
संदेश (Atom)