फिर तुझसे क्या मांगूं |
प्यार है दुलार है
धनधान्य है सब कुछ है
जीवन में रवानी है मैं तुझसे क्या मांगूं | बस अब एक ही बात है शेष जीवन की चाह नहीं है इसी लिए तुझसे मुक्ति मार्ग मांगूं | आशा
जब से शीश नवाया
उन चरणों में
एक ही रटन रही
राधे कृष्ण राधे कृष्ण
आस्था बढ़ती गई
नास्तिकता सिर से गई
गीता पढ़ी मनन किया
गहन भावों को समझा
मन उसमें रमता गया
आज मैं मैं न रहा
कृष्णमय हो गया
नयनाभिराम छबि दौनों की
हर पल व्यस्त रखती है
बंधन ऐसा हो गया है
वह बंधक हो गया है
राधे राधे कृष्ण कृष्ण |
सीमेंट के जंगल में
मशीनों के उपयोग ने
किया उसे बेरोजगार क्या खुद खाए क्या परिवार को खिलाए आज मेहनतकश इंसान परेशान दो जून की रोटी को यह कैसी लाचारी बच्चों का बिलखना सह नहीं पाता खुद बेहाल हुआ जाता जब कोई हल न सूझता पत्नी पर क्रोधित होता मधुशाला की राह पकड़ता पहले ही कर्ज कम नहीं उसमें और वृद्धि करता जब लेनदार दरवाजे आये अधिक असंतुलित हो जाता हाथापाई कर बैठता जुर्म की दुनिया में प्रवेश करता | आशा