03 जून, 2015

कहर गर्म मौसम का

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तपता सूरज
जलता तन वदन
लू के थपेड़े
करते उन्मन |
नहीं कहीं
 राहत मिलाती
 गर्म हवा के झोंकों से
मौसम की ज्यादती से |
बेचैनी बढ़ती जाती
कितनों की
जानें जातीं
बढ़ते हुए तापमान से |
यह है  तल्ख़ मौसम
भीषण गर्मीं का
त्राहि त्राहि मच जाती
कोई राहत न मिलाती |
भूले से यदि कोई बादल
आसमान में दीखता
वर्षा की कल्पना मात्र से
मन मयूर  हर्षित होता  |
पर ऐसा  भी न हो पाता
हवा के साथ साथ
बादल कहीं चला जाता
प्यास जग रह जाता |
सूरज की तपिश से
धरती पर दरारें
सूखे नदी नाले
 बदहाली का जाल बिछायें  |
सडकों पर पिघलता डम्बर
नंगे पैरों में छाले
ज्यादती है  मौसम की
शब्द नहीं मिलते
किस तरह बतलाऊँ |
आशा

01 जून, 2015

तुम न आये

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रातें कई बीत गईं
पलकें न झपकीं क्षण भर को
निहारती रहीं उन वीथियों को
शमा के उजाले में |
कब रात्रि से सुबह मिलती
जान नहीं पाती
बस जस तस
जीवन खिचता जाता
एक बोझ सा लगता |
सोचती रहती
कोई उपाय तो होगा
बोझ कम करने का
उलझनें सांझा करने का |
मुझसे मेरी समस्याएँ
बाँट  लेते यदि तुम आते
बोझ  हल्का हो जाता
सुखद जीवन हो जाता |
तुम निष्ठुर निकले
मुझे समझ न पाए
मैं दूर तक देखती रही
पर तुम न आये |
आशा

30 मई, 2015

जल बरसा

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जल बरसा 
आँखों से छमछम 
रिसाव तेज |

रुक न सका 
लाख की मनुहार 
बहता रहा |

वर्षा जल सा 
कपोल की राह पर 
बहता गया |

अश्रु जल के 
निशान  बन गए 
सूखे कपोल |
आशा




29 मई, 2015

बूँद

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बूँदें स्नेह की
मन पर पड़तीं
प्यार जतातीं |

बूंदे जल की
धरा पर बरसीं
पृथ्वी सरसी  |


जल संचय
बूँद बूँद से होता
घट भरता |

जल से भरा
सर पर सोहता
घट छलका |

बूँदें जल की
नयनों से बरसीं
रुक न सकीं |

बहते अश्रु
सागर के जल से
कपोल भीगे |

बूँदें ओस की
पुष्पों पर दीखतीं
हुई सुबह |

नव पल्लव
हो गए शवनमी
ओस जल से |


आशा