रावण प्रतीक बुराई का
जन मन के कलुष का
हर वर्ष होता घायल
राम जी के वाण से |
कुरीतियों भस्म होतीं
दसशीश को धराशाही कर
तब भी कम न होता कलुष
आज के समाज का |
दिनदूना रात चौगुना
अत्याचार बढ़ता जाता
नित नए रूप रावण लेता
कलुषित समाज को करता |
आखिर कितने
राम जन्म लेंगे उसके विनाश को
समाज के आत्याचारों के
परिशोधन को
बुराई मुक्त उसे करने को |
बुराई मुक्त उसे करने को |
कहीं भी सुरक्षित नहीं
महिलाएं ,बालक आम आदमी
कब कलुष का निस्तार होगा
स्वच्छ मन मस्तिष्क होगा |
कहीं कुछ तो अच्छाई होगी
जो बुराई पर हावी होगी
फिर दशहरा मनाया जाएगा
राम विजय का जश्न होगा |
आशा |