24 फ़रवरी, 2016

चंद हाईकू

रूप गर्विता के लिए चित्र परिणाम
देह दीवानी
हुई रूप गर्विता
सत्य न जानी|

कर्मठ जीव
व्यस्त बना रहता
सब पा जाता |

प्यारी बिटिया
जल से तृप्त करे
बृद्ध जनों को |

ईंट उठाती
मेहनत करती
झोली में बच्चा |

प्यार जताता
भोला सा बचपन
चतुष्पद से |


रिसते जख्म
प्यार का मलहम
दिल को छुए |


दो नन्हें चूजे
माता की पनाह में
हैं सुरक्षित |

आशा




21 फ़रवरी, 2016

है रीत यही इस जग की

वानप्रस्थ आश्रम के लिए चित्र परिणामyauvan के लिए चित्र परिणामजन्म के लिए चित्र परिणाम
चिता के लिए चित्र परिणाम
है रीत कैसी  इस जग की 
परिवर्तन में देर नहीं लगती 
बचपन जाने कहाँ खो जाता 
यौवन की दहलीज पर आ 
वह भी न टिक पाता 
उम्र यौवन की
अधिक नहीं होती 
जल्द ही दस्तक
 वानप्रस्थ की होती 
यह भी विदा ले लेती 
अंतिम पड़ाव आते ही 
मोह भंग होने लगता 
और जाने कहाँआत्मा
 देह त्याग भ्रमण करती 
देह विलीन हो जाती 
पञ्च तत्व में मिल जाती 
केवल यादें रह जातीं 
जाने वाला चला जाता 
बीता कल पीछे छोड़ जाता 
आगमन गमन का 
क्रम निरंतर चलता 
संसार की चक्की में
 सभीको पिसना होता
इससे कोई न बचता 
जन्म मरण दोनो ही 
पूर्व निर्धारित होते 
जन्म का पता होता 
पर मृत्यु कहाँ से
कैसे कब वार करेगी 
नियंता ही जानता 
 पर अपने कर्मों का हिसाब
 सभी को देना होता 
इस लोक में या परलोक में 
है रीत यही इस जग की
 कुछ भी नया नहीं है
आशा




20 फ़रवरी, 2016

मुक्तक


नाचता मोर के लिए चित्र परिणाम
दीवानगी इस हद तक बढी
भूल गई वह कहाँ चली
यदि किसी अपने ने देखा
सोचेगा क्यूँ यहाँ खड़ी  |
 |
मन मोर थिरकने लगता
मंथर गति से नाचता
पा कर अपनी संगिनी
अपना सब कुछ वारता |


ना पाल मोह इस देह से
ना मद से ना ही मत्सर से
 परमात्मा से नेह लगा
भर जाएगा सुकून से   |
आशा


18 फ़रवरी, 2016

सुरभि

एक दिन घूमते समय रास्ते में सुरभि मिल गई थक गए थे सोचा क्यूँ न पुलिया पर बैठें और पुरानी बातों का आनन्द लें |गपशप में कहाँ समय निकल गया पता ही नहीं चला |अब यह आदत सी हो गई रोज घर से और पुलिया पर बैठ बातें करते |
    एक दिन वह बहुत उदास थी | जब कारण पूंछा अचानक रोने लगी जब शांत हुई तो उसने बताया "एक समय था जब उसके श्रीमान जी मिल में इंजीनियर थे बड़े ठाट थे |मिल बंद होते ही बेरोजगारी के आलम में कुछ दिन तो ठीक ठाक गुजरे पर गिरह की पूंजी कब तक चलती सोचा अपने बड़े बेटे के पास जा कर रहें "
दोचार दिन तो बहुत खातिर हुई पर धीरे धीरे काम को लेकर अशांति होने लगी कल यही हुआ जब सुबह पेपर पढ़ रहे थे "विनीता कह रही थी आखिर बाबूजी को काम ही क्या है क्या वे बच्चों को स्कूल तक लेजा ला नहीं सकते इतना तो कर ही सकते हैं दिन भर पड़े रहते हैं और मुफ्त में रोटियाँ तोड़ते हैं "|
   बेटा बोला धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा अभी से अशांति क्यूं ?कोई सुनेगा तो क्या कहेगा |
         सुरभि बता रही थी "मैं तो प्रारम्भ से ही काम करती रहती थी पर इंजीनियर साहव ने तो कभी एक ग्लास भर कर भी न पिया था "उसका  रोने का कारण था शान से बिताया गया बीता हुआ कल यदि पहले से ही आगे की सोचते तोआज यह स्थिति नहीं आती पर नियति के आगे कुछ भी नहीं हो सकता

तभी तो कहा जाता है जो आगे की सोच कर चलता है और कठोर धरती को नहीं छोड़ता है वही सरल जीवन जी पाता है |
 सदा भविष्य को ध्यान में रख कर आने वाले कल के लिए प्लानिग करना चाहिए और बचत करने की आदत डालना चाहिए |
      मुझे आज भी उस घटना का स्मरण होआता है और मेरे आगे आ जाती है सुरभि की सूरत जिसे भुला नहीं पाती |
आशा











16 फ़रवरी, 2016

बातें दो बच्चों की





एक दिन की बात है दो बच्चे बंद धर के दरवाजे पर बैठे थे |अनुज बहुत खुश था क्यूं की उसका जन्म दिन था वह सोच रहा था कब मां आये और उसके लिए जन्म दिन का तोफा लाए |
   उसने अपने मित्र रवि से पूँछा”तू मेरी साल गिरह पर आएगा ना  आज शाम को “रवि ने कहा यार मैं तो आ जाता पर मेरे पास गिफ्ट तो है ही नहीं तुझे क्या दूंगा |वैसे भी महीने का अंत  होने को है |मेरी मम्मी 



  के पास पैसे भी तो न होंगे “खाली हाथ आना तो ठीक न लगेगा “|
अनुज ने सलाह दी “ अरे गिफ्ट की  क्या बात करता है वह मेरे  पास जो डायरी है उसी को कागज़ में लपेट कर दे देना पर उसमें तो कुछ लिखा भी है “रवि उदास स्वर में बोला | अरे उन पन्नों को फाड़ देना ||गिफ्ट तो
      “ अरे उन पन्नों को फाड़ देना और दे देना “  गिफ्ट ही होता है तू आना  जरूर “|वे दौनों इतनी गंभीरता से कर रहे थे कि उनकी बातों को मैं आज तक ना भुला पाई |


15 फ़रवरी, 2016

परिवर्तन मौसम का

बदला मौसम का अंदाज 
बिछा हरा मखमली जाल 
बंजर भूमि पर हरियाली 
पुष्पित हुई डाली डाली 
झूमती खेतों में बाली बाली 
है अद्भुद एहसास
अन्तरिक्ष में उगा पीला फूल
 लगा विज्ञान का चमत्कार 
बेमौसम लदे वृक्ष पुष्पों से 
फूले कनेर पीले पीले 
होने लगी बेचैनी 
गटेर के पाँचों के लिए 
पर अचानक गिरता त्ताप्मान
बर्फवारी की मार 
किसान कैसे झेल पाता
पाले के आसार देख
 बेचारा  सदमें में आजाता
आनेवाले कल के हश्र में 
खुद को असुरक्षित पा
जीवित रहना नहीं चाहता
अनिश्चितता हर बात में 
मौसम के व्यवहार में 
अर्थ व्यवस्था कैसे सुधरे 
जब टक्कर हो 
मुसीबतों के पहाड़ से |
आशा