सूखा खेत
फसल कट गई
थका कृषक ताक रहा
अपने आशियाने को
कच्चा छोटा सा टापरा
खिड़की पर लटकता
फटा परदा
उसमें से कोई झाँक रहा
यहाँ वहां फिरते कुटकुट
अपनी उपस्थिति दर्ज कराते
बच्चे देख देख मुस्काते
द्वारे पर मूंज की मचिया
महमानों के लिए बिछाई
दरी उस पर डाली ऐसे
सोफे का कवर हो जैसे
मधुर आवाज कोयल की
जब तब सुनाई देती
आगाज होने लगता
अमवा पे आए बौर का
मुंह पर हलकी सी
चमक आजाती
कैरियों को बेच कर
कुछ तो पैसे मिले जाएंगे
यही सोच विचार में डूबा
वह देखता उस पेड़ को
आर्थिक रूप से कमजोर
पर मन का धन है उसके पास
है कृषक आशा पर जीता है
ऐसे ही खुश हो लेता है
आशा