12 जुलाई, 2016

बरखा ( हाईकू )

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घन गरजा
टकराए बदरा
आई बरखा |
सावन आया
फुहार बरखा की
भली लगती |


नदी उफनी
भरे ताल तलैया
आई बरखा |

झूमती आईं
सावन की घटाएं
धरा प्रसन्न |

जल बरसा
शांत धरा की गर्मीं
तरु भी खुश |

आशा

09 जुलाई, 2016

हाथ मेरे कुछ भी न आया

दिल लगा बैठा के लिए चित्र परिणाम

मैंने समय व्यर्थ ही गवाया
हाथ मेरे कुछ भी न आया
इस बात से ही प्रसन्न हूँ कि
मेरा नाकाम होना
किसी के काम तो आया
मेरी हार उसकी जीत में बदली
बस इसी ने मेरा दिल दुखाया
फिर भी उसे बधाई दी यह सोच
मेरा नाकाम होना
किसी के काम तो आया 
हुआ नाकाम जिस के कारण 
उसी से दिल लगा बैठा 
जब उसी से हार मिली 
मन ही अपना गवा बैठा |
आशा

07 जुलाई, 2016

चोर

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था लाचार आदतों से
था रोग हाथ की सफाई का
जब राज खुलने लगा
बाजार चर्चा का गर्म हुआ
था आज तक चोर गुम नाम
सब के समक्ष आ ही गया
वह सरे आम बदनाम हो गया
नजरें न मिला पाया सब से
जीना उसका हराम हो गया |
आशा

06 जुलाई, 2016

बदलता युग

परिवर्तन सोच में के लिए चित्र परिणाम
चक्र समय का चलता जाता 
कभी न थकता ना ही रुकता 
दिन बीता रात गई 
महीने गए साल गुजरे 
युग तक बीत गया 
सूरज वहीं  चन्दा वहीं
वहीं  ठहरी कायनात
यूं तो परिवर्तन कम ही हुए 
पर सोच बदल गया
 बाक़ी सब यथावत रहा 
बच्चे भूल गए 
सुबह क्या होती है 
दस बजे सो कर उठते 
रात्री जागरण करते 
किताब सामने खुली रखते 
पढ़ने का आडम्बर रचते 
वे ऐसा करके 
अपने भविष्य से 
 कर रहे   खिलवाड़ 
 यह् नहीं समझते 
भूले कहानियां दादी नानी की 
खुद तक सीमित हो गए
    आधुनिकता की होड़ में 
क्यूं कोई पीछे रहे 
बच्चे कहाँ हैं 
 क्या कर रहे हैं 
इससे किसी को क्या करना है 
अपने  सामाजिक जीवन में  
कोई व्यवधान न आए
लोग इसी से मतलब रखते 
पर हम समय के साथ 
न चल पाए  थक गए
बहुत पीछे रह गए 
पर कुछ ऐसा भी  हुआ 
जिसे भूलना कठिन न हो 
खट्टी मीठी यादों की 
झड़ी लगी रहती है 
उसमें ही व्यस्त हो जाते हैं 
यह बात अलग है कि
तीव्रता यादों की 
कम ज्यादा होती रहती है 
ना प्यार बढ़ा न नफरत गई 
समय की घड़ी चलती रही |
आशा

                                                                                                        
                                                                                                                                                                                            
                                                                                                                                                                                                                    

05 जुलाई, 2016

सत्य या इत्फाक


रोज तेरा सपनों में आना के लिए चित्र परिणाम

जब से हुई मुलाक़ात आप से
मैं खेलने लगा जज़बातों से
रोज मेरे सपनों में आना
नींद से मुझे जगाना
यह सत्य है या इत्फाक
कोशिश की पर जान न पाया
बिना इजाज़त आपके
मैं खोने लगा आपमें |
आशा

02 जुलाई, 2016

क्यूं न जताया

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क्यूं ना जताया आपने
माजऱा क्या है
ना ही बताया आपने
मेरी खता क्या है
यदि कोई कमी थी
इशारा तो किया होता
कुछ तो बताया होता
आखिर वह कमी क्या है
मैनें कोशिश की होती
उसे सुधारने की
सफल होता न होता
मैं नहीं जानता
ईश्वर की रजा क्या है |
आशा

30 जून, 2016

रूप गर्विता

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क्यूं हुई रूप गर्विता
मदमस्त नशे में चूर
गर्व से नजरें न मिलाती
जब से हुई मशहूर
माना है तू बहुत सुन्दर
पर ना जन्नत की हूर
है तू आम आदमी ही 
फिर क्यूं इतनी मगरूर
सब से दूर होने लगी है
आया क्यूं इतना गरूर
जिस दिन धरती पर 
 रखेगी  अपने कदम 
तभी सभी को जानेगी 
खुद को भी पहचानेगी
गरूर भूल जाएगी 
सब का दुलार पाएगी |