15 जुलाई, 2016
13 जुलाई, 2016
जिन्दगी की पतंग
जिन्दगी की पतंग
बंधी साँसों की डोर से
उड़ चली आसमान में
डोर कब कटनी है
नहीं जानती
उड़ान भरती बिंदास
अनजाने परिवेश में
मन में अटूट विश्वास लिए
उसने हार कभी न मानी
ना ही कभी मानेगी
ऊंचाई छूना चाहती है
है विकल आगे जाने को
डोर है मजबूत
यूं ही नहीं टूटेगी
मंजिल तक पहुंचा कर ही
किसी कमजोर क्षण में
झटके से टूटेगी
या झटके खाएगी
कहीं बीच में लटका देगी
यह है मात्र कल्पना
सच से बहुत अलग
कोई नहीं जानता
कितनी साँसें लिखी हैं
उसके भाग्य में |
आशा
12 जुलाई, 2016
बरखा ( हाईकू )
घन गरजा
टकराए बदरा
आई बरखा |
टकराए बदरा
आई बरखा |
सावन आया
फुहार बरखा की
भली लगती |
फुहार बरखा की
भली लगती |
नदी उफनी
भरे ताल तलैया
आई बरखा |
झूमती आईं
सावन की घटाएं
धरा प्रसन्न |
जल बरसा
शांत धरा की गर्मीं
तरु भी खुश |
आशा
भरे ताल तलैया
आई बरखा |
झूमती आईं
सावन की घटाएं
धरा प्रसन्न |
जल बरसा
शांत धरा की गर्मीं
तरु भी खुश |
आशा
09 जुलाई, 2016
हाथ मेरे कुछ भी न आया
मैंने समय व्यर्थ ही गवाया
हाथ मेरे कुछ भी न आया
इस बात से ही प्रसन्न हूँ कि
मेरा नाकाम होना
किसी के काम तो आया
मेरी हार उसकी जीत में बदली
बस इसी ने मेरा दिल दुखाया
फिर भी उसे बधाई दी यह सोच
मेरा नाकाम होना
किसी के काम तो आया
हुआ नाकाम जिस के कारण
उसी से दिल लगा बैठा
जब उसी से हार मिली
मन ही अपना गवा बैठा |
आशा
आशा
07 जुलाई, 2016
चोर
था लाचार आदतों से
था रोग हाथ की सफाई का
जब राज खुलने लगा
बाजार चर्चा का गर्म हुआ
था आज तक चोर गुम नाम
सब के समक्ष आ ही गया
वह सरे आम बदनाम हो गया
नजरें न मिला पाया सब से
जीना उसका हराम हो गया |
आशा
06 जुलाई, 2016
बदलता युग
चक्र समय का चलता जाता
कभी न थकता ना ही रुकता
दिन बीता रात गई
महीने गए साल गुजरे
युग तक बीत गया
सूरज वहीं चन्दा वहीं
वहीं ठहरी कायनात
यूं तो परिवर्तन कम ही हुए
पर सोच बदल गया
बाक़ी सब यथावत रहा
बच्चे भूल गए
सुबह क्या होती है
दस बजे सो कर उठते
रात्री जागरण करते
किताब सामने खुली रखते
पढ़ने का आडम्बर रचते
वे ऐसा करके
अपने भविष्य से
कर रहे खिलवाड़
यह् नहीं समझते
भूले कहानियां दादी नानी की
खुद तक सीमित हो गए
आधुनिकता की होड़ में
क्यूं कोई पीछे रहे
बच्चे कहाँ हैं
क्या कर रहे हैं
इससे किसी को क्या करना है
अपने सामाजिक जीवन में
कोई व्यवधान न आए
लोग इसी से मतलब रखते
पर हम समय के साथ
न चल पाए थक गए
बहुत पीछे रह गए
पर कुछ ऐसा भी हुआ
जिसे भूलना कठिन न हो
खट्टी मीठी यादों की
झड़ी लगी रहती है
उसमें ही व्यस्त हो जाते हैं
यह बात अलग है कि
तीव्रता यादों की
कम ज्यादा होती रहती है
ना प्यार बढ़ा न नफरत गई
समय की घड़ी चलती रही |
आशा
05 जुलाई, 2016
सत्य या इत्फाक
जब से हुई मुलाक़ात आप से
मैं खेलने लगा जज़बातों से
रोज मेरे सपनों में आना
नींद से मुझे जगाना
यह सत्य है या इत्फाक
कोशिश की पर जान न पाया
बिना इजाज़त आपके
मैं खोने लगा आपमें |
आशा
मैं खेलने लगा जज़बातों से
रोज मेरे सपनों में आना
नींद से मुझे जगाना
यह सत्य है या इत्फाक
कोशिश की पर जान न पाया
बिना इजाज़त आपके
मैं खोने लगा आपमें |
आशा
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