05 अप्रैल, 2018

महिला तो महिला रहेगी



बड़ी बड़ी बातों से
कोई महान नहीं होता
एक दिन की चांदनी से
अन्धकार नहीं मिटता
महिला तो महिला ही रहेगी
सुखी हो या दुखों से भरी
एक दिन में सुर्ख़ियों में आकर
अखवारों में तस्वीर छपा कर
अपनी योग्यता गिनवाकर
अन्तराष्ट्रीय दिवस में छा कर
प्रथम श्रेणी में तो न आ पाएगी
दूसरे दर्जे की है मुसाफिर
प्रथम में कैसे जाएगी
वर्षभर अनादर सहती
बारबार सताई जाती
अपेक्षित सम्मान न पाती
कुंठाओं से ग्रसित वह
कैसे यह दिवस मनाए
अपनी पीड़ा किसे बताए |
आशा

04 अप्रैल, 2018

दोनो का प्रारब्ध एक सा



पिंजरे में band ek pakshi देखना देती लड़की के लिए इमेज परिणाम


घुगरू वाली पायल पहन कर
पूरे आँगन में घूमती
एक रंगबिरंगी चिड़िया उड़ आई
मेरे साथ  चली  दूर तक
मुझसे मित्रता हुई उसकी
कुछ दिन यह क्रम जारी रहा
पर एक दिन उसे
किया गया  बंद
 सुन्दर से पिंजरे में
बहुत पंख  फड़फड़ाए उसने
 पर स्वतंत्र न हो पाई
 थक कर निढाल हो गई
जैसे  जैसे उम्र बढ़ी मेरी
 बंधन भी बढ़ने लगे
यह करो यह ना करो
की दूकान हो गई
अधिक रोकाटोकी ने
मन को विद्रोही किया
कोई बंधन स्वीकार न था   
स्वतंत्र विचरण ,आचरण
ऊंचाई तक जाने के स्वप्न
साकार करने के जब दिन आए
सजी सजीसजाई सुन्दर सी
डोली में की गई बिदाई
ससुराल में रहने को 
उस चिड़िया सी हो कर रह गई
स्वप्न सिमटे मन के कौने में
ऊंची उड़ान कल्पना में |
आशा   

03 अप्रैल, 2018

चिड़िया की सतर्कता












  प्रातः काल सामने एक वृक्ष पर
बड़े प्रयत्न से छोटी सी  चिड़िया ने
तिनके चुन चुन घोसला बनाया
रहती थी वह अमन चैन से
अपने चूजों के संग बड़े सुख से
न जाने गिद्ध आया कहीं से
अपनी दृष्ट जमाई चूजों पर
चिड़िया ने भांप लिया
सिर पर मंडराते खतरे को
 पंख फैला  आवाज तेज कर
बच्चों के  इर्दगिर्द उड़ी तेजी से
गिद्ध उसकी सतर्कता से हो भयभीत
 कुछ देर रुक कर चल दिया
 सतर्कता आताताई से 
बड़े काम आई उसके |
आशा

01 अप्रैल, 2018

जिन्दगी की धूप -छाँव






जिन्दगी के खेल  में  
 बड़ा है झमेला
कहाँ शुरू कहाँ ख़तम 
 किसी ने न जाना
 पहले पहल जब आँखें खुली  
लुकाछिपी खेली सूरज से
 कुनकुनी धूप सुबह की
 कहीं  ले गईं मन को
मन रमता  खेलकूद में
शैशव बीतता चढ़ते दिन सा
भरी दोपहर में तपती धूप में
पहुँचते अपने कार्य क्षेत्र में
योवन कब कहाँ खो जाता
समय न मिलता सोचने का
धूप- छाँव के खेल खेलता सूरज
   रथ पर हो कर सवार धीरे से 
 चल देता अस्ताचल को
रौशनी कम कम होने लगती 
  वह दिखता कांसे की थाली सा

जाने कब शाम गुजर जाती 

जान नहीं पाते 

जीवन अनुसरण करता 

आते जाते सूरज का
रात को सो जाता  सूरज 
डेरा जमाते सपने आकर 
जाने क्यूँ महसूस होता 
 अब  समय आ गया
जीवन के अवसान का 
आत्मा की मुक्ति का |
आशा

31 मार्च, 2018

क्षमा







क्षमा भाव अपनाइए
इसे  अनमोल जान
ज़रा सी बात बढ़ जाती
न किया यदि क्षमा दान
बहुत कुछ खोना पड़ता है
यदि अहम रहे  मन में
छोटी छोटी बातों पर
मन के  विचलन से  
बनता है बातों का बतंगड़  
यदि की लापरवाही
इन से बच कर जो चले
उसने ही सफलता पाई
क्षमा करने के लिए
 होता दिल दरिया सा 
छोटी मोटी बातों को 
नजर अंदाज करते ही
मन का कलुष
 जब  छट जाता
तभी मन क्षमा कर पात़ा 
जिसने किया नियंत्रित
अपनी भावनाओं को  
उसने सब को क्षमा किया
खुद पर संयम से ही पाया
 इस अनमोल क्षमा भाव को
क्षमा भाव है अति आवश्यक
सब के लिए समाज में |
आशा

30 मार्च, 2018

बंधी मुठ्ठी




रोज साथ रहते रहते
जाने क्यों मन मुटाव हुआ
आपस में बोलना छोड़ा
एक पूरब एक पश्चिम
एक ही घर में  रहें पर
 संवाद हीनता की स्थिति में
इससे परेशानी हुई बहुत  
बीच बचाव भी बेअसर रहा
मध्यमा ने थोड़ी की पहल
कहा चलो एक ही काम
अलग अलग करो
पहले अवसर छोटी को मिला
वह पूर्ण रूप से असफल रही
अनामिका ने भी जोर अजमाया
वह भी कुछ कर न सकी
मध्यमा ने कुछ कुछ हिलाया
पर वह भी सफल न हो पाई
सब के बुरे हाल देख
तर्जनी ने हार मानली
तब अंगूठे ने मिलाया हाथ सब से   
मुठ्ठी बनाई करने को कार्य
बहुत सरलता से सम्पन्न हुआ वह  
कार्य की पूर्ण आहुति हुई
सब ने कसम खाई
सदा हिलमिल कर रहने की|
आशा

28 मार्च, 2018

भवसागर में नौका






काली अंधेरी रात में 
 डाली अपनी नौका मैंने
इस भवसागर में
पहले वायु  ने बरजा
पर एक न मानी
फिर गति उसकी
बढ़ने लगी मनमानी
जल यात्रा लगी बड़ी सुहानी
नौका ने गति पकड़ी 
लहरों से स्पर्द्धा की ठानी                        
साथ हवा के
 दूर बहुत निकल आए
वायु ने अब रुख बदला
हुआ सीमित चक्रवात में
नाव ने अनुसरण किया
 घूमने लगी भवर में
आसपास कोई न था
प्रभु तेरा ही सहारा था
तेरा नाम लब पर आया
भूली सारी मन की माया  
तुमने सुनी  अर्जी मेरी
गति नाव की हुई धीमीं
तब भी झूल रही
 जीवन मृत्यु के बीच
जीवन के लिए संघर्षरत
न जाने किनारा कब मिलेगा |
आशा