31 मई, 2018
29 मई, 2018
बहुरूपिया
.
देखो जा कर दरवाजा खोल
क्यूँ गली में मच
रहा शोर
चटपट से दरवाजा खोला
झाँक कर देखा उसमें
से
खड़ा हुआ था एक
व्यक्ति
भयानक रूप धरे
डरा रहा था बच्चों
को
जल्दी से किया बंद दरवाजा
पूंछा उसने माँ से
पूंछा उसने माँ से
आखिर है वह कौन ?
रोज नए रूप में सज
कर आता
कभी डाकिये का रूप
धरता
तो कभी काली माता बन
जाता
क्या उसका कोई नाम
नहीं
कोई उसे क्या काम नहीं ?
माँ ने समझाया है
उसका यही काम
तरह तरह के स्वांग
बनाना
और सब को
हंसाना
यही है उसकी कमाई का
जरिया
कहते है उसे
बहुरूपिया |
आशा सादगी
थी नादान बहुत अनजान
जानती न थी क्या था उसमे
सादगी ऐसी कि नज़र न हटे
लगे श्रृंगार भी
फीका उसके सामने |
थी कृत्रिमता से दूर बहुत
कशिश ऐसी कि आइना भी
उसे देख शर्मा जाए
कहीं वह तड़क ना जाए |
दिल के झरोखे से
चुपके से निहारा उसे
उसकी हर झलक हर अदा
कुछ ऐसी बसी मन में
बिना देखे चैन ना आए |
एक दिन सामने पड़ गयी
बिना कुछ कहे
ओझिल भी हो गयी
पर वे दो बूँद अश्क
जो नयनों से झरे
मुझे बेकल कर गए |
आज भी रिक्त क्षणों में
उसकी सादगी याद आती है
मन उस तक जाना चाहता है
उस सादगी में
श्रृंगार ढूंढना चाहता है |
आशा
25 मई, 2018
प्रश्न हल कैसे हो ?
प्रश्न हल कैसे हो ?
कल क्या थे आज क्या हैं आप ?
कभी सोचना आत्म विश्लेषण करना
सोचते सोचते आँखें कब बंद हो जाएंगी
कहाँ खो जाओगे जान न पाओगे
पहेलियों में उलझ कर रह जाओगे
इतने परिवर्तन कैसे हुए कब हुए
प्रश्न वहीं का वहीं रह जाएगा
हल नहीं कर पाओगे
मन में मलाल रहेगा ऐसा किस लिए ?
पहले निर्मल मन से सोचते थे
छल छिद्र से थे कोसों दूर पर अब
दुनियादारी के पंक में बाल बाल डूबे
यही तो वह चाबी है जिससे ताला खोल सकेंगे
उलझनों से उबर पाएंगे होते परिवर्तन को देख
आत्म विश्लेषण सही किया या नहीं किया
यही तो हल है क्या थे? क्या हो गए का
आशा
कभी सोचना आत्म विश्लेषण करना
सोचते सोचते आँखें कब बंद हो जाएंगी
कहाँ खो जाओगे जान न पाओगे
पहेलियों में उलझ कर रह जाओगे
इतने परिवर्तन कैसे हुए कब हुए
प्रश्न वहीं का वहीं रह जाएगा
हल नहीं कर पाओगे
मन में मलाल रहेगा ऐसा किस लिए ?
पहले निर्मल मन से सोचते थे
छल छिद्र से थे कोसों दूर पर अब
दुनियादारी के पंक में बाल बाल डूबे
यही तो वह चाबी है जिससे ताला खोल सकेंगे
उलझनों से उबर पाएंगे होते परिवर्तन को देख
आत्म विश्लेषण सही किया या नहीं किया
यही तो हल है क्या थे? क्या हो गए का
आशा
24 मई, 2018
उफ यह मौसम गर्मीं का
उफ यह जेठ का महीना
तपता सूरज दरकती धरा
उफ ! यह मौसम गर्मी का
औरबिजली की आँख मिचौली
बेहाल कर रही है
मति भी कुंद हो रही है
यदि कोई काम करना भी चाहे
बिना रोशनी अधूरा है
दोपहर की गर्म हवा
कुछ भी करने नहीं देती
सारा दिन बोझिल कर देती
बिना लाईट के आये
ऐ .सी . भी काम नहीं करता
कूलर की बात करें क्या
जब भी उसे चलायें
सदा गर्म हवा ही देता
केवल बेचैनी ही रहती है
नींद तक अधूरी है
आकाश में यदि बादल हों
उमस और बढ़ जाती है
घबराहट पैदा कर जाती है
कहाँ जायें क्या करें
कुछ भी अच्छा नहीं लगता
इतना अधिक तपता मौसम
जिससे बचने का उपाय
नज़र नहीं आता
पर इस ऋतु चक्र में
गर्मी बहुत ज़रूरी है
इसके बाद ही बारिश आती है
चारों ओर हरियाली छाती है
मन हरियाली में रम जाता है
उत्साह से भर जाता है
फिर से हल्का हो जाता है |
आशा
औरबिजली की आँख मिचौली
बेहाल कर रही है
मति भी कुंद हो रही है
यदि कोई काम करना भी चाहे
बिना रोशनी अधूरा है
दोपहर की गर्म हवा
कुछ भी करने नहीं देती
सारा दिन बोझिल कर देती
बिना लाईट के आये
ऐ .सी . भी काम नहीं करता
कूलर की बात करें क्या
जब भी उसे चलायें
सदा गर्म हवा ही देता
केवल बेचैनी ही रहती है
नींद तक अधूरी है
आकाश में यदि बादल हों
उमस और बढ़ जाती है
घबराहट पैदा कर जाती है
कहाँ जायें क्या करें
कुछ भी अच्छा नहीं लगता
इतना अधिक तपता मौसम
जिससे बचने का उपाय
नज़र नहीं आता
पर इस ऋतु चक्र में
गर्मी बहुत ज़रूरी है
इसके बाद ही बारिश आती है
चारों ओर हरियाली छाती है
मन हरियाली में रम जाता है
उत्साह से भर जाता है
फिर से हल्का हो जाता है |
आशा
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