मालूम न था
किस धर्म में पैदा हुए
जिसने जो भी बताया मान लिया
प्रभु ने ऐसा रूप दिया
जिसने जो भी बताया मान लिया
प्रभु ने ऐसा रूप दिया
माली ने गुलदस्ता बनाया
रंग बिरंगे पुष्पों से सजाया
मानो विभिन्न परिधान में लिपटे
लोग खड़े हों एक समूह में
कोई खुद को हिन्दू कहता
कोई अपने को मुस्लिम बताता
कोई रूप सिक्ख का धरता
कोई बौद्ध धर्म अपनाता
कोई होता जैन
अनगिनत देवी देवता पूजे जाते
कभी तो हद हो जाती
दीमक का घर ही पुजने लगता
धर्म के नाम पर
शायद है एक परमात्मा के रूप अनेक
जिसकी जैसी मानसिकता
उसे वही दिखाई देता
भगवान् के रूप में
आस्था उसमें ही बढ़ती जाती
जिस ओर भीड़ होने लगती
कभी दिनचर्या में बदलाव के
लिए
व्रत उपवास किये जाते
कभी टोने टोटके करवाते
बाबाओं के चक्कर लगाए जाते
पर सच्चे अर्थों में
धर्म का ज्ञान न हो पाता
समझ से परे है धर्म की
परिभाषा
मानती हूँ धर्म है व्यक्तिगत
हम सब का धर्म है एक सत्ता के हाथ में
जो हर समय निगाह रखती है
हर कार्य सही है या गलत
पहले से भास् कराती है
हिन्दुस्तान में रहते है
बासुधैव कुटुम्बकम की भावना रखते हैं
बोली चाहे जो भी हो
बासुधैव कुटुम्बकम की भावना रखते हैं
बोली चाहे जो भी हो
हमारा धर्म है हिन्दुस्तानी |
आशा