09 जनवरी, 2020

विकल्प


हूँ  गुनहगार
अवगुणों की खान
जितनी बार मन को टटोला
हर बार अपनी कमियों को देखा
अनदेखा न कर सकी
आत्म मंथन किया |
अवगुणों में  कोई  कमीं न आई  
सुधार की किरणे
 उन्हें छू तक न पाईं 
अब तो आशा छोड़ चुकी हूँ
झूटी दिलासा से क्या होगा |
जब बीमारी लाइलाज हो  
समूल नष्ट कर देना है बेहतर
 मैं अब जान गई हूँ  
अपने आप को पहचान गई हूँ |
चाहे जितने यत्न करू
 सभी  यूंही जाया हो जाते
लाइलाज व्यक्ति  को
 भाग्य भरोसे छोड़ा जाए
 या कोई इलाज किया जाए
उसे कोई फर्क नहीं पड़ता |
  वह यदि  भाग्यवादी हो जाए मुस्कुराए
 नकली मुखौटा चहरे पर लगाए
उसके मन में क्या उथलपुथल होती है
वही जान पाता है |
अपनी सोच के विकल्प को
सही ढंग से पहचान कर
वही खोज सकता है
सही दिशा दे सकता है
 कोई अन्य नहीं |
आशा

07 जनवरी, 2020

चोट







                                       पीड़ा तन की फिर भी
सहन की जा सकती है
चोट में दर्द से निजात पाना
 कठिन तो होता है पर असंभव नहीं |
 मन में बिंधे शब्द बाण
करते  गहरे  घाव
जरा सी रगड़ से बनते नासूर
जब तब रिसाव उनसे होता
खून के आंसू  नयनों से टपकते
इतना रुलाते हैं कि
नयनों में सुनामी आ जाती है
तट बंध  टूट जाते हैं |
इतना  दारुण कष्ट  होता
सहनशक्ति जबाब दे जाती
सारी शिक्षा धरी  रह जाती  
स्त्री मन होता धरती सा
 उसमें है  सहन शक्ति अपार
कहना बड़ा सरल है पर
जिस पर बीतती है वहीं
इसको अनुभव कर पाती है |
चोट कैसी भी हो
शारीरिक या मानसिक
दौनों में है अंतर बृहद   
तन की चोट समय पा
 ठीक तो हो जाती चाहे पूरी न हो  
 मन की चोट समय के साथ
और अधिक गहराती  
कटु शब्द प्रहार करते इतने गहरे
कि घाव नासूर में बदल जाते  
 मन को लगी चोट ठीक नहीं हो पाती
 दिल की  गहराई में पैंठ जाती
उत्तरोत्तर समय पा   
अधिक ही  उभर कर आती | 
                                             
          आशा 


   

  

05 जनवरी, 2020

हाईकू





१-सूरज छिपा
बादलों की गोद में
गर्मी ना आई

२-वाह मौसम
तेरे नखरे बड़े
सर्दी है आज

३-बहुत प्यारी
बर्फ चादर ढकी
है चारो और

४-न जाने कब
आए मौसम प्यारा
मन को भाए

५-घना कोहरा
है छटता जा रहा
सर्दी न गई |

आशा

04 जनवरी, 2020

अनोखे शिल्पी


हो तुम अनोखे शिल्पी
एक से एक मूर्तियाँ बनाते
प्राण प्रतिष्ठा उनमें करते
लगता है ऐसा जैसे हो  जीवंत
अभी हलचल में आएंगी
मन में उनके है क्या
मुखरित हो बयान करेंगी  
यूँ तो नयन और
 लव रहते मौन सदा  
हरपल ऐसा लगता है
सीपी सम्पुट खोलेगी
शब्दों का स्त्राव करेगी
भावनाओं में बह कर
अभी  बोल पड़ेगी
चंचल चितवन से मन को
मोहे लेगी ऐसा जैसे  
जन्नत की सैर करा देगी
हर रंग जो तुमने चुना है
सदाबहार लगता है
उससे  सजाए परिधान
बड़े सुहाने लगते हैं
दिल चाहता है बस
 एकटक निहारते ही रहें
मन में बसा लें उन्हें |
आशा

01 जनवरी, 2020

दुआ बद्दुआ



तुम्हारी हर  बद्दुआ
 मुझे दुआ सी लगे
क्यूँ कि हर  शब्द उसका
  तुम्हारे  लवों का स्पर्श पा
 बदलता  हैं  रूप अपना
अपनों  के दिल से  निकली बातें
 सभी  बद्दुआएं  नहीं होती  
अपना रंग दिखाती हैं 
अपनी सी  हो जाती हैं
 माँ  से मिली सभी  नसीहतें  
चाहे उस समय कटु लगें पर 
 हर  पग पर राह दिखाती हैं
जीवन सफल बनाती हैं
  अपनों के दिल से कभी
                     कटु वचन नहीं निकलते                 
उनमें कुछ भलाई
 कुछ शिक्षा निहित होती है
ज़रा  सोच कर देखो 
 यदि उन्हें मान दे पाओगे
हित तुम्हारा  ही होगा
कोई अपना ही  साथ निभाएगा
तुम्हारा अहित न चाहेगा
तुम्हारे सुख में सुखी होगा
दुःख के निदान की कोशिश करेगा |

आशा