एक दौर था ऐसा जब वह
प्रथम पेज अखवारों के भरे होते महामारी समाचारों से
आपस में विचारों को न मिल पाने से
मायूस सा बुझा बुझा रहता था
हर पल उसका सिहरन से भरा होता था
घूम
जाते हैं वे लम्हें मस्तिष्क में आज भी |
सिहरन से
भरे वे पल अब यादों में सिमटे हैं
कितनी नृशंस हत्याओं से जब रूबरू हुए थे
भूल नहीं पाते वे हादसे एक नहीं अनेक
जब लाशों के अम्बार लगे रहते थे |
अनगिनत लोग लहूलुहान हुए थे
जब भीड़ पर बलप्रयोग हुआ भरपूर
नहीं बच पाए प्राकृतिक आपदाओं से भी बेचारे
आपस में विचारों को न मिल पाने से
नित नए विवाद जन्म लेते रहते पड़ोसी देशों में
आपस में मित्र भाव भूल बैर मन में लिए रहते
आए दिन का खून खराबा जीना दूभर किये रहता |
जीवन में फैली अशांति सरल नहीं होती जीवन शैली
हर समय मर मर कर जीने की कला सब नहीं जानते
पर जांबाज सिपाही रहते तत्पर हर क्षण देश हित के लिए
प्रकृतिक आपदाओं से भी मोर्चा लेते नहीं हारते
हैं सक्षम आज भी हर
हादसे से निवटने में |
देश में चिकित्सक भी सजग प्रहरी की तरह
दिन रात जुटे रहते निस्वार्थ भाव से सेवारत रहते
वे सहयोग पूरे तन मन से करते गर्व
होता है उन पर
जिनका उद्देश्य है देश हित सर्वोपरी |
आशा