था इन्तजार हर वर्ष की तरह
बरसात के इस मौसम का
धरती में दरारे पड़ी थी
अपना दुःख किसे बताती |
झुलसी तपती गरमी से वह
तरस रही थी वर्षा के लिए
हरियाली की धानी चूनर से
सजने के लिए |
बड़ी बड़ी बूंदे बरसीं
फिर मौसम ने ली अंगड़ाई
बादल गरजे बिजली कड़की
ली करवट इस मौसम ने |
कहीं अती भी हो गई
बाढ़ आने से जिन्दगी बेहाल हुई
घर खेत खलिहान डूबे सारे
घर से बेघर हुए लोग |
उजड़ती गृहस्ती देख रहे
थे
सूनी सूनी आँखों से
तब भी कोई मदद नहीं मिल पाई
जब गुहार लगाई शासन से |
तिनका तिनका जोड़ा था
कितना समय गुजारा था
उस छोटे से घर के निर्माण में
जो अब जल मग्न हुआ |
एक झटके में बाढ़ का जल
सब कुछ बहा कर ले गया
किसी ने कल्पना तक न की थी
कि ऐसा समय भी आएगा |
बुने गए सारे स्वप्न ध्वस्त हुए
बिखरे क्षण भर में ताश के पत्तों जैसे
जो कुछ बचा समेट लिया
चल दिए नए बसेरे की खोज में|
जाने कब हालात में परिवर्तन
आएगा
बरसात का कहर कब थम पाएगा
क्या ईश्वर ने परिक्षा ली है धैर्य की ?
या प्रारब्ध में यही लिखा है
कितना और संघर्ष है जिन्दगी में
विचार मग्न वे सोच रहे हैं मन में |
आशा
आशा