मन क्या चाहता था कभी सोचा नहीं था
जब विपरीत परिस्थिति सामने आई
मन ने की बगावत हुई बौखलाहट
झुझलाहट
में गलत राह पकड़ी
कब बाजी हाथ से निकली ?
किसकी गलती हुई ?पहचान नहीं पाया
अब क्या करे ?किससे मदद
मांगे ?
पहले कभी सोचा नहीं अंजाम क्या होगा ?
जब तीर कमान से निकल गया
खाली
हाथ मलता रह गया
उसका दिल हुआ बेचैन फिर भी
कोई निदान इस समस्या का हाथ नहीं आया
सारे ख्याल किताबों में छप कर रह गए
क्यूं कि पुस्तक भी सतही ढंग से पढ़ी थीं
गूढ़ अर्थों का मनन किया नहीं था
सही गलत की पहचान नहीं थी
तभी जान नहीं पाया मन की चाहत को
पहचान नहीं पाया वह खुद को
सब आधुनिकता की भेट चढ़ गया |
आशा
आशा