06 अगस्त, 2020

खोखला मन







मन क्या चाहता था कभी सोचा नहीं था
जब विपरीत परिस्थिति सामने  आई
मन ने की बगावत  हुई बौखलाहट
 झुझलाहट में  गलत राह पकड़ी
 कब  बाजी हाथ से निकली ?
किसकी गलती हुई ?पहचान नहीं पाया   
अब क्या करे  ?किससे  मदद  मांगे   ?
पहले कभी सोचा नहीं अंजाम क्या होगा ?
 जब तीर कमान से निकल गया
 खाली हाथ  मलता रह गया 
उसका  दिल हुआ  बेचैन फिर भी  
कोई  निदान  इस समस्या का हाथ नहीं आया
सारे ख्याल किताबों में छप कर  रह गए
क्यूं कि पुस्तक भी  सतही ढंग से  पढ़ी थीं
  गूढ़ अर्थों का मनन  किया नहीं  था
 सही गलत की पहचान नहीं थी
तभी जान नहीं पाया  मन की चाहत को
पहचान नहीं पाया  वह  खुद को
सब आधुनिकता की भेट चढ़ गया  |
आशा 

05 अगस्त, 2020

राम जन्म भूमि का शिलान्यास आज

आज है   बड़ा  शुभ दिन

सरयू नदी के तट पर    

शिलान्यास श्री राम जी की

 जन्म भूमि का होना है|

आज होगा बहुप्रतीक्षित  

भूमी पूजन मंदिर स्थल का    

बरसों बरस से था इंतज़ार

 आज के इस सुअवसर  का |

बहुत प्रयास किये गए थे

 प्राणों  की आहुती भी दी थी कितनों ने

जो अब फलीभूत हुई  है

अब प्रतिफल मिला है इस रूप में  |

राम भक्तों की मनोंकामना

पूरी हो रही है  सत्य में

देश को  तोहफा मिला अनमोल

अयोद्ध्या में भव्य  राम मंदिर के रूप में |

आशा

 


04 अगस्त, 2020

व्यथा मन की



जब विष बुझे  शब्दों के बाण
 मुहँ के  तरकश से निकलते
क्षत विक्षत मन करते
 उसे  विगलित करते | 
दिल का सारा चैन हर लेते
व्यथा मन की जानने की
किसी को यूं तो जिज्ञासा न होती
जो भी जानना चाहते ठहरते |
परनिंदा का आनंद उठाते   
 अपनी उत्सुकता को
 और भी हवा देते |
 मन की व्यथा बढ़ती जाती
खुद मुखर होने को 
 बेचैन हो  जाती |
जब तक  मन का हाल
 बयान नहीं करती
अंतस में करवटें
 बदलने लगती  |
व्यथा मन की
 इतनी बढ़ जाती
 चहरे के  भावों पर
 स्पष्ट दिखाई देती|
 सोचना पड़ता
 कोई तो निदान होगा
 जग से इसे छिपाने का
कोई हल नजर नहीं आता  
इससे निजात पाने का |
जब व्यथा विकराल रूप लेती
 हद से गुजर जाती  
बहुत समय लगता 
मन को सामान्य होने में  |
हर  शब्द तीर सा  चुभता 
अंतस  में बहुत कष्ट होता  
 दिल के टुकड़े हजार करता
जाने अनजाने में |
आशा


02 अगस्त, 2020

रक्षाबंधन

रक्षाबंधन के उपलक्ष्य में सभी  भाई  बहनों  को हार्दिक शुभ कामनाएं|
                                     बहनों ने किया सिंगार 
                                       हाथ सजाए मेंहदी  से
पैरों में लगा कर आलता  
 है इन्तजार बड़ी उत्सुकता से
माँ ने  बड़े प्यार से  बुलाया है
है रक्षा बंधन का त्यौहार
 भइया  लेने आने वाला है
आँगन में झूला डलवाया नीम की डाली  पर
लकड़ी की पट्टी मंगवाई बीकानेर से |
साड़ी सतरंगी लहरिये की लाया भाई
जयपुर के  बाजार  से
मां ने  लगाया गोटा उसमें बड़े प्यार से
हरी कांच की चूड़ियाँ लाई निखार कलाई में |
हुई  तैयार बहना बांधने को रक्षासूत्र
बांधी राखी और दीं दुआएं भर पूर
रोली चावल से लगाया  टीका
 करवाया मुंह मीठा फेनी  घेवर से |
भाई ने झुक कर
 छुए पैर चाहा आशीष जीजी से    
बहन नें की कामना
 भाई की दीर्घ आयु की |
सारे दिन गहमागहमी रही झूले पर
आनेजाने वाली सखी  सहेलियों की
कब सांझ हुई पता ही नहीं चला
 ऐसे मना त्यौहार राखी का |
आशा