आशा कैसी किस से करूं
कोई तो अपना हो
कब तक आश्रित रहूंगी
यह तक मालूम नहीं |
किताब भी मौन है
कुछ बोलती नहीं
न जाने कैसे नाराज हुई
यह भी मालूम नहीं |
यह कैसा अन्याय है
मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ
अब तक समझ न पाई
पुस्तक से दूरी किस लिए |
आशा कैसी किस से करूं
कोई तो अपना हो
कब तक आश्रित रहूंगी
यह तक मालूम नहीं |
किताब भी मौन है
कुछ बोलती नहीं
न जाने कैसे नाराज हुई
यह भी मालूम नहीं |
यह कैसा अन्याय है
मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ
अब तक समझ न पाई
पुस्तक से दूरी किस लिए |
कितना सताया है
मुझे
इंतज़ार करके हारी
मेरी परीक्षा कब तक लोगे
मेरे श्याम बिहारी |
घंटों बैठी बाट निहारती
तुम न आए गिरधारी
मैं सारे जग से ठगी गई
यह हुआ कैसे मैं जान न पाई
|
अब जा कर सतर्क हुई हूँ
जब से ठोकर खाई है
दुनिया की रीत निराली है |
यहाँ स्थान रिक्त नहीं है
मुझ जैसे लोगों के लिए
ना तो चालबाजी आई
ना ही लोका चार यहाँ का |
मैंने किनारा कर लिया है
इस अजूबी दुनिया से
अब आपकी शरण में आई हूँ
अब तो अपनालो मुझे |
आशा
कि मेरा सोच गलत नहीं था
नया परिवेश नया मकान
निभाना इतना सहज नहीं था
फिर भी मैंने तालमेल किया है
अब कोई समस्या नहीं है ।
खाली घर और हम अकेले
करते तो क्या करते
आने को हुए बाध्य
कैसे अकेले रह पाते वहाँ ।
स्वास्थय ने भी किनारा किया
वह भी साथ न दे पाया
आखिर वक्त से सम्झौता किया
यहाँ आने का मन बनाया |
आशा
कितने अनसुलझे प्रश्नों ने घर
बना लिया है ह्रदय में
अब तो स्थान ही नहीं बचा है
अन्य प्रश्नों के लिए |
जब भी उत्तर खोजना चाहती हूँ
खोजे नहीं मिलते
बहुत बेचैनी होती है
असफलता जब हाथ आती है |
पर फिर भी जुझारू रहती हूँ
साहस से दूर भागती नहीं
कुछ तो सफलता मिल ही जाती है
आत्म शान्ति मिल जाती है ||
मन को सुख मिल जाता है
फिर दो
और प्रश्न हल करने में
सफलता का नशा
आशा
आने वाले कल के लिए
कोई उत्साह नहीं है अब
जीवन की शाम का
इंतज़ार कर रहे हैं |
हर लम्हा पुकार रहा है
प्रभु का भजन करो
उसके सानिध्य में जाओ
उसका गुणगान करो |
समय व्यर्थ न गवाओ
भर पूर जिन्दगी जी ली है
अब और की लालसा न रखो
यह न सोचो आगे क्या होगा |
हर वर्ष की तरह यह वर्ष भी
आया है बीत ही जाएगा
माया मोह से बचो
कुछ नेकी के काम करो |
आशा