हर वर्ष मनाते हैं लोहड़ी का त्यौहार
तिल गुड़ के मिष्ठान बना करते है आवाहन |
आज रात्रिमें अलाव जलाते
नवल धान का भोग लगाते
एकत्र हो दे कर परिक्रमा करते है सम्मान |
आशा
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हर वर्ष मनाते हैं लोहड़ी का त्यौहार
तिल गुड़ के मिष्ठान बना करते है आवाहन |
आज रात्रिमें अलाव जलाते
नवल धान का भोग लगाते
एकत्र हो दे कर परिक्रमा करते है सम्मान |
आशा
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माँ के आँचल की छाँव तले
ममता भरी गोद में
जब पनाह मिलती है
बड़ा सुकून मिलता है |
धीरे धीरे जब सर सहलाती है
एक अनोखी ऊर्जा का संचार होता है
यही ऊर्जा जीने की ललक
जगाती है
क्षण भर में ही सारी थकान
दूर हो जाती है |
अद्भुद स्नेह से हो तृप्त
जब गोदी से सर हटाता हूँ
बड़ा सुकून मिलता है मुझे
मन में होता स्नेह का संचार सुखद |
काश स्नेह मई माँ का प्यार ऐसा
सब के नसीब में होता
माँ की गोद की उष्मा
बड़े भाग्य से मिलती |
जो सुरक्षा वहां मिलती
उसकी कल्पना बड़ी सुखदाई
होती
माँ की कभी कमी सदा खलती
होती अनमोल माँ की गोद
उसकी कोई सानी नहीं होती|
आशा
हुआ अनोखा एहसास मुझे
यह कैसे हुआ क्या
हुआ
मैं जानती कैसे
अब मुझे विचार
करना होगा ।
जब आज तक न जान पाई
न जाने कब तक
इंत्जार रहेगा तुम्हारा
मैं कैसे जान पाती ।
मन का विश्वास
अभी खोया नहीं है
हैअसीम श्रद्धा प्रभू पर
यह तो याद है मुझे ।
अचानक ख्याल आया मुझे
पहले जब तुमसे मिली थी
एक बात का वादा किया था
वही रहा है नियामत मेरे लिये ।
आशा
आशा कैसी किस से करूं
कोई तो अपना हो
कब तक आश्रित रहूंगी
यह तक मालूम नहीं |
किताब भी मौन है
कुछ बोलती नहीं
न जाने कैसे नाराज हुई
यह भी मालूम नहीं |
यह कैसा अन्याय है
मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ
अब तक समझ न पाई
पुस्तक से दूरी किस लिए |
कितना सताया है
मुझे
इंतज़ार करके हारी
मेरी परीक्षा कब तक लोगे
मेरे श्याम बिहारी |
घंटों बैठी बाट निहारती
तुम न आए गिरधारी
मैं सारे जग से ठगी गई
यह हुआ कैसे मैं जान न पाई
|
अब जा कर सतर्क हुई हूँ
जब से ठोकर खाई है
दुनिया की रीत निराली है |
यहाँ स्थान रिक्त नहीं है
मुझ जैसे लोगों के लिए
ना तो चालबाजी आई
ना ही लोका चार यहाँ का |
मैंने किनारा कर लिया है
इस अजूबी दुनिया से
अब आपकी शरण में आई हूँ
अब तो अपनालो मुझे |
आशा
कि मेरा सोच गलत नहीं था
नया परिवेश नया मकान
निभाना इतना सहज नहीं था
फिर भी मैंने तालमेल किया है
अब कोई समस्या नहीं है ।
खाली घर और हम अकेले
करते तो क्या करते
आने को हुए बाध्य
कैसे अकेले रह पाते वहाँ ।
स्वास्थय ने भी किनारा किया
वह भी साथ न दे पाया
आखिर वक्त से सम्झौता किया
यहाँ आने का मन बनाया |
आशा
कितने अनसुलझे प्रश्नों ने घर
बना लिया है ह्रदय में
अब तो स्थान ही नहीं बचा है
अन्य प्रश्नों के लिए |
जब भी उत्तर खोजना चाहती हूँ
खोजे नहीं मिलते
बहुत बेचैनी होती है
असफलता जब हाथ आती है |
पर फिर भी जुझारू रहती हूँ
साहस से दूर भागती नहीं
कुछ तो सफलता मिल ही जाती है
आत्म शान्ति मिल जाती है ||
मन को सुख मिल जाता है
फिर दो
और प्रश्न हल करने में
सफलता का नशा
आशा