12 मार्च, 2021

भाग्य में क्या लिखा है

 यह मेरी समझ से बाहर है

मेरे भाग्य में क्या लिखा है ?

जब भी आकलन करना चाहूँ  

स्वयं पर हंसी आती है मुझे |

क्या फिजूल की बातें ले बैठा

विचारों की कोई सीमा नहीं है

वे बहते हैं नदी के जल के प्रवाह से

कभी रुकते हैं किसी बड़ी बाधा से  |

पर कभी उस का भी प्रभाव नकार देते हैं

मनमानी करने की जिद्द ठान लेते हैं

दोराहे पर खडा हूँ किसे अपनाऊँ 

 पर बड़ा दुःख दे जाते हैं

 यही मुझे सालता रहता है |

 इस झमेले से कैसे निजात पाऊँ

खुद  सम्हल कर पाँव बढाऊँ

जब खुद पर ही नियंत्रण नहीं रहा मेरा  

किसी और को क्या समझाऊँ |

आशा

11 मार्च, 2021

iशिवरात्रि

 


शिवजी की बरात निकली

 बहुत धूमधाम से

शिव पार्वती मिलन हुआ

विधि विधान से |

पार्वती ने पाया था

 मनोनुकूल वर

कठिन तपस्या से

तभी नाम हुआ अपर्णा उनका   |

रूप अनूप जोड़ी का

 देखते नहीं थकते दृग

दर्शन हुए बड़े भाग्य से |

हर वर्ष मनाया जाता

विवाह उत्सव उनका

 शिवरात्रि के रूप में |

बेल पत्र व् पुष्प चढ़ाते  

हल्दी कुमकुम दूध चढाते  

 भोग लगाया जाता

विधि विधान से |

उपवास दिन भर रखते

फल फूल से पेट भरते

भोले नाथ की माला जपते

बहुत यत्न से  |

मन चाहा पाने की

  लालसा सदा रही  मन में

 वरद हस्त प्रभू का

  सर पर हो  सदा  

यही रहा  मन  में |

आशा

 

10 मार्च, 2021

कारण समझ न पाई

राह देखती रही तुम्हारी

पर तुम न आए

मुझसे हो क्यूँ क्रोधित

समझती हूँ मैं भी |

यदि बात नहीं करनी थी

 न सामने आते  

पुराने घावों को

उघाड़ते ही क्यों ?

केवल  एक झलक दिखाई दी

 यह  किस लिए

क्या जरूरी है

हर बात बताऊँ तुम्हें |

जैसी स्वतंत्रता तूमने  चाही

 वैसी  ही मैंने अपनाई

क्या  नहीं है  यही   नियम मेरे लिए |

समाज से डरने के लिए

मुझे ही बलि का बकरा  बनाया

सही बात पर भी

मेरा नाम मिटाया

दिल के श्याम पट से |

 कैसा विधान  अपनाया तुमने

जो   वादे किये थे मुझसे

फिर क्यों न पूरे किये तुमने |

कभी ठन्डे मन से सोचना

क्या अकेली मेरी ही खता रही  सारी  

या मुझे उलझाया गया है

 किसी साजिश में |

 नहीं चाहती  अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता  

मुझे कुछ तो  बुद्धि आई होगी  

देख कर  दुनिया के छल प्रपन्च   

  उनका पीछा करता मानव देख |

 मन मेरा भी  होना चाहता

  सराबोर  आधुनिकता के  रंग में

 पर   बोझ से दबा

  है इसी उपक्रम में |

क्या चाहती हूँ सोच नहीं पाती

हूँ मैं क्या समझ से बाहर है

मैंने तुम्हें समझा है पर खुद को नहीं

अभी तक कारण समझ न पाई |

आशा 

09 मार्च, 2021

खुशबू तेरी


 

खुशबू  तेरी फैल जाती थी 

सारे चौवारे में

जैसे ही कदम रखती 

 भरी  महफिल में |

यदि  होती तू दूर नहीं  

सभी की नज़रों से

तुझे जो प्यार दुलार 

मिला करता था घर में

 वही  क्या महसूस किया

 तूमने भी  भरी महफिल में |

पर मेरी निगाहों को  कहीं

अंतर नजर आया दौनों  में

लोगों  की सोच ने  विशिष्ट

रंग दिया  मेरे नजरिये को |

जब एक बार बना ख्याल

तुम्हारे  लिए मन में

मैं कई  बार विचार करती हूँ

किसी एक बात पर

सोच को अटल कर लेना

 है यह कितना  न्याय संगत?

 कितनी उथली हो गई सोच मेरी

मेरे मस्तिष्क ने मुझे चेताया |

महफिल में अलग सी  गंध 

 फैल जाती तुम्हारे आने से

 किया अनुभव जो मैंने 

बहुतों ने महसूस किया वही  अंतर

उस महक और आज की खुशबू में |

यह परिवर्तन मैंने ही नहीं पर

 अनुभवी आँखों  ने भी इसे पहचाना 

 उम्र का है यही तकाजा मान

सोचा और नजर अंदाज किया | 

आशा 

08 मार्च, 2021

आज अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस है


 

आज  अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस है

साल २१  का पहला नेट का  त्यौहार है

 कोई तो दान करो ए अंतर जाल वालों

मेरा विश्वास करो या नहीं |

 मेरी बात को तो मानोंगे

इस वर्ष फिर यह दिवस  लौट कर  न आएगा

कोई बाध्यता नहीं   पर  किसी का तो सम्मान करों

 दिल से न सही  दिखावे के लिए ही सहीं |

यही तो खर्च होगा एक फूल माला

 और एक कप चाय या कॉफी  प्रति व्यक्ति

फिर अखवारों में यही मुद्दा उछलेगा

क्या क्यों किसलिए जैसे प्रश्न उछलेंगे |

 कुछ अनोखा नहीं करना है

 महिलाओं का  महिमा मंडान करना  है 

बधाई तो  देना ही  बनती  हैं

दो बधाई और शुभ कामनाएं  

आज की कर्मठ  महिलाओं  को 

पाओ प्रशस्ति बहुत सारी |

आशा 

शा

05 मार्च, 2021

बीतना चाहा इस वसंत ने

 


बीतना चाहा इस  वसंत ने

 फागुनी हवा ने अपना हक़ माँगा  

वह देने को तैयार ही बैठा था  

लौटने का मन बनाया |

उसे इस बात का एहसास

पहले भी हुआ था पर उसे

अपने  मन का भ्रम जान

नजर अंदाज किया था |

पर्यावरण के परीवर्तन ने

 दी गवाही फागुन आने की

 वृक्षों के  पत्ते झरने लगे

 कुछ वृक्ष  ऐसे भी थे जिनमें

कलियाँ प्रस्फुटित होने लगी |

जैसे नव कलियों में से

झाँकते  पलाश के पुष्प

दुनिया देखने को थे बेकरार

खिले  पुष्प हुआ सुर्ख वृक्ष पूरा

अद्भुद सिंगार हुआ  धरती का |  

खेतों में नवल धान्य  तैयार

कर रहा प्रतीक्षा होली की

चंग पर थाप दे करते नृत्य 

 फागुनी  गाने तैयार कर

रसिया नए सुनने सुनाने को |

घर घर जाकर  गीत  गाना  

 फगुआ मांगना हुआ प्रारम्भ

सराबोर हुआ सारा समाज

फागुन के रंग में भीगा समाज

महिलाएं व्यस्त पकवान बनाना में |

मौसम का बदलता स्वभाव   

स्पष्ट नजर आता

गर्मीं की आहट भी कभी 

 मन को मुदित करती |

आशा

04 मार्च, 2021

देखे प्रेम के कई रूप




                                                                         देखे प्रेम के कई रूप 

भाँती भाँती के रूप अनूप

 भक्ति  भाव उजागर होता

कभी  माँ की ममता का बहाव होता 

कभी मित्र भाव दिखाई देता

कभी निस्वार्थ प्रेम लहराता

अपना परचम फहराता

प्रकृति  अपने पंख फैलाती 

कभी देश प्रेम होता सर्वोपरी

किसे प्राथमिकता दे  क्या है जरूरी

सोच सही मार्ग न दिखा पाता ||

 केवल एहसास खुद से प्रेम का

देता आत्म मोह  का नमूना कभी 

 यौवन से प्रेम उफन कर आता कभी 

जिस समय हो अति आवश्यक

वही प्रेम समझ में आता |