आगे बढ़ने न दे 
कोई तो कारण होगा
 इसका खोजना होगा   
पैरों में बंधन क्यों
 बेड़ियाँ लगी है 
हाथ भी बंधे हैं खुलते
नहीं हैं  |
यह बंधन मन से स्वीकारा
है 
या किसी दौर से
गुजरे लोगों से 
यह अब तक  तक स्पष्ट नहीं 
बंधन मन से हो तब
कोई बात नहीं  
पर थोपे गए बंधन
 स्वीकार
नहीं मन को |
मन तो चंचल है
 विद्रोही
हो जाता है 
कहने से नहीं चलना चाहता
 मनमानी करता  
यही दुर्गुण कष्टकर
होता जीवन में 
जितनी भी कोशिश करूं
 व्यर्थ हो जाती है |
समय यूँ ही नष्ट होता
 किसी का क्या जाता 
मन अपनी मर्जी से
 चलता रुकता 
कुछ नया करने का
मन
न होता 
हरियाली देख मन
 यहीं ठहर गया है 
आगे जाने की श्रद्धा
यहाँ की हरीतिमा
जो
कुछ देती है मुझे 
मन तरोताजा हो जाता
 प्रसन्नता
देता है 
खुशी से दमकता चेहरा
पर्याप्त है मेरे लिए
यही मेरे मन को
संतुष्टि देता है |




