23 मई, 2021

जब समुद्र मंथन हुआ


जब हुआ समुद्र मंथन
महादेव ने
हलाहल पान किया
दी जगह विष को
अपने कंठ में |
निकले चौदह रत्न
और बहुत कुछ
अमृत से भरा
घट भी निकला
दानवों ने जिसे
झपटना चाहा |
मोहिनी एकादशी को
विष्णु ने
रूप धरा मोहिनी
घट अमृत को
छीना दानवों से
सब देवों को
अमृत पान कराया |
दानवों से
उन्हें बचाया
देवों को अजर
अमर बनाया |
आशा
सीमा वर्णिका and 4 others
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22 मई, 2021

आत्मकेंद्रित


वह दिन भी गुजरा बेचैनी में

कोई खबर न आई वहां से

 लंबा समय बीता था जहां  

अब कुछ  नहीं  रहा वहां

 सिवाय बुरी खबरों के |

अब अखवार के

 सारे पृष्ट भरे होते 

प्रारम्भ से अंत तक 

होती जन धन की  हानि से |

कभी प्राकृतिक आपदाओं 

के आगमन से

कभी मानव जन्य

 प्रकृति के अति  दोहन से |

मन  दुखित होता है

 ऐसे हादसों की जानकारी से

मन की रौशनी बुझ जाती है

बुद्धि कुंद हो जाती है 

साथ नहीं देती  | 

हम भी यदि  होते वहां

हम होते न होते 

 क्या हाल होता हमारा |

मैं हूँ आत्म केन्द्रित

 सब की सोच नहीं पाती

केवल खुद तक ही 

सीमित होकर रह जाती | 

जब भी कोई बुरी 

घटना सुनाई देती है

 उसी में उलझी रहती हूँ

कुछ भी अच्छा नहीं लगता

 बेचैनी बढ़ती जाती है |

आशा

21 मई, 2021

हाइकु


 




 


१-है अभिलाषा

     किसीके काम आऊँ

                           रहूँ सफल  

२-आशा या इच्छा

कभी  पूर्ण न होती

रहती आधी

३-लगता मीठा 

रस  भरी बातों से 

प्यार जताना

४-तानों में रहा 

झलकता प्यार है   

दिखी  ममता

५-प्यार दुलार

कहाँ रही है  कमी  

बेरुखी क्यों

६- अच्छा लगता

व्यवहार तुम्हारा

दिल जीतता

७-अंधेरी रात

हलकी बरसात

दिल खुश है

८- झूल रही मैं

रहती दुविधा में

क्या किया जाए

९-उड़ान भरी

अधर में अटकी

पंख उलझे  

आशा 

  

 

 

19 मई, 2021

मधुर वाणी


 









कितनी बार कहा तुमसे

बार  बार समझाया भी 

किसी से मीठा बोलने में

 है क्या कष्ट तुम्हें |

 तुम ने तो कसम खाई है

कहना नहीं मानने की

अपने मन की करने की

फिर चाहे जो परिणाम  हो |

तुम्हारी यही आदत तुम्हें

ठीक से जीने नहीं देती

जाने कितने शत्रु पैदा हो जाते हैं

तुम्हारे सुख से जलने लगते हैं |

 यही विचार लिए यदि  हो मन में

तब कैसे जीवन में होगे सफल

हर व्यक्ति तुम्हें ताने देगा

न खुद जियेगा ना तुम्हें जीने देगा |

जब दिल में क्लेश पनपेगा

आसपास का वातावरण दूषित करेगा

ना कभी हंस बोल पाओगे

ना ही  सुख से रह पाओगे |

तब हो जाएगा जीना दूभर

खो जाएगा सुकून मन का

 धरती  पर भार होकर

रहने से क्या लाभ होगा  |

कभी कहना मान कर देखो

अंतर समझ में आ जाएगा

तुम चाहते हो क्या सब से

यह भी स्पष्ट हो जाएगा  |

मधुर भाषण  में है बहुत शक्ति

जिसने उसे अपनाया

सबको  अपने करीब पाया

 आपस में भाईचारा बढ़ते ही

मन का  सुख  भरपूर पाया   |

आशा