क्या खोया क्या पाया मैंने
05 अक्तूबर, 2021
क्या खोया क्या पाया
क्या खोया क्या पाया मैंने
04 अक्तूबर, 2021
हाइकु
·
Bottom
of Form
हाइकु मेरे
पूर्ण हैं या अपूर्ण
नहीं जानती
बिल्ली आई है
चूहे तेरी न खैर
कजा आई है
प्यार है मेरा
बिकाऊ नहीं यह
है
अनमोल
जीत व् हार
दो पहलू सिक्के के
एक हमारा
जीना मरना
मनुष्यों के लिए ही
है आवश्यक
प्यार है मेरा
बिकाऊ नहीं यह
है अनमोल
एहसास है
अपने अस्तित्व का
भूला नहीं हूं
जलधि जल
मीठा न होता कभी
सदा से खारा
प्यासा रहा हूँ
सागर तट पर
मुहँ न धुला
अधूरी प्यास
बटोही तेरी रही
सागर तीर
मीठी है वाणी
बोलों की है छुआन
कटूता नहीं
आशा
11
खुद्दारी
खुद्दारी है आवश्यक
यदि समझे न अर्थ इसका
तो क्या जान पाए
अपने को न पहचान सके तो क्या किया |
हर बात पर हाँ की मोहर लगाना
नहीं होता कदाचित यथोचित
कभी ना की भी आवश्यकता होती है
अपनी बात स्पष्ट करने के लिए |
दर्पण में अपनी छवि देख
अपने विचारों में अटल रहना
स्वनिर्णय लेना है आवश्यक
अपने आचरण में परिवर्तन न हो
है यही खुद्दारी सरल शब्दों में |
अपनी बात पर अडिग रह
सही ढंग से कोई कार्य करना
अपनी बात भी रह जाए
और किसी की हानि न हो |
स्वनिर्णय आता खुद्दारी के रूप में
यदि होना पड़े इस से दूर
तब दूसरों की जी हुजूरी कहलाती
और खुद्दारी नहीं रहती |
जीवन की सारी घटनाएं इससे सम्बंधित होतीं
खुद्दारी आत्म विश्वास में वृद्धि करती
मन को चोटिल होने से बचाती
सफल जीवन जीने की राह दिखाती |
आशा
03 अक्तूबर, 2021
काला कागा
02 अक्तूबर, 2021
किससे अपनी बातें कहूं
करवट बदल कर रातें गुजारी
पर नींद न आई मैं क्या करूं
किससे अपनी बातें कहूं
अपना मन हल्का करूं |
दिन तो व्यस्त रहने में गुजरता है
पर रातें होतीं पहाड़ जैसी लंबी
आत्म विश्लेषण ही हो पाता
पर संतुष्टि को छू तक नहीं पाता |
सही गलत पर विश्लेषण की
मोहर लगना अभी रहा शेष
ऐसा न्यायाधीश न मिला
जो मोहर लगा पाता |
कम से कम रातों में नींद तो आती
स्वप्नों की दुनिया में खो जाती
भोर की प्रथम किरण जब मुंह चूमती
कुछ देर और सोने का मन होता
नभ में पक्षियों की उड़ान और कलरव
जागने को बाध्य करते |
रात्री जागरण का कारण भूल
रात में चाँद तारे गिनना छोड़
मैं उठ जाती और सुबह से शाम तक
01 अक्तूबर, 2021
जीने में क्या रखा है ?
वर्तमान में जीना ही
सच्चा जीना है
केवल बीतें कल को
ले कर रोना
उन्हीं यादों में
डूबे रहना
वर्तमान से दूर भागना
बीते कल में
उलझे रहने में
यादों में खोए रहने में
क्या लाभ है
आज को भी बर्वाद
कर देता है
आने वाले कल की
कल्पना के
स्वप्न देखने से
क्या फ़ायदा है
जीना भार स्वरुप
लगने लगता है
जब उससे बाहर
आना चाहो
लौट नहीं पाते
सांस लेने को जगह
नहीं मिलाती
खुले आसमान में
उड़ नहीं पाते
बहुत घुटन होती है
जिन्दगी की चाह
नहीं रह जाती
पर अपने हाथ में
कुछ भी नहीं है
जो लिखा है भाग्य में
वही सच्चाई है |
आशा
30 सितंबर, 2021
क्षणिकाएं
ओ भ्रमर फूलों पर क्यों मडराते
उनके मोह में बंध कर रह जाते
कभी पुष्पों में ऐसे बंध जाते
आलिंगन मुक्त नहीं हो पाते |
भोर की बेला में दृष्टि जहां तक जाती
जहां मिलते दीखते धरा और आसमा
वहीं रहने का मन होता तुलसी का विरवा होता
आँगन में आम अमरुद के पेड़ लगे होते |
दोपहर में सूर्य ठीक सर के ऊपर होता
गर्म हवाओं के प्रहार से धूप से पिघल जाते
प्रातः की रश्मियाँ छोड़ अपनी कोमलता
कहीं सिमट जातीं विलुप्त हो जातीं |
सबसे प्यारा संध्या का आलम होता
सांध्य बेला में मंदिर की आरती में
जब भक्तगण हो भाव बिभोर वन्दना करते
आदित्य अस्ताचल को जाता लुका छिपी वृक्षों से खेलता
कभी स्वर्ण थाली सा हो दूर गगन में अस्त होता |
तितली रानी अपने रंगों से सब का मन मोहतीं
विभिन्न रंगों की होतीं पंख फैला पुष्पों को चूमतीं
उनकी अटखेलियाँ मेरे मन को बांधे रखतीं ऐसे
कई रंगों की पतंगों का मेला
लगा हो व्योम में जैसे |
आशा