06 अक्तूबर, 2021

रौद्र उत्तंग तरंगें जलधि की



            जलधि  के किनारे  खड़ा  मैं सोच रहा

ईश्वर ने खारे जल को किस लिए बनाया

जब प्यासे को जल न मिला क्या लाभ इसका

धूप से तपा बटोही खोजता रहा पीने का जल

यह तो है इतना खारा मुंह में डालना मुश्किल

  किसी को पीने का जल नहीं दे पाता

इस में इतना खारापन  किस लिए डाला  |

 कभी सुनामी का कहर आता तहसनहस कर जाता 

बहुत  समय तक सम्हलने न देता  

उत्तंग लहरों का बबाल हुआ  आए दिन की बात

कितनी कठिनाई से बसे बसाए घर

पल दो पल में नष्ट हो जाते बच नहीं पाते |

यह असंतोष कोई कब तक सहेगा

क्या कोई हल निकलेगा इस आपदा से बचने का

या यूँ ही उलझा रहेगा प्रकृति की दुष्ट द्रष्टि में  

कभी बच न पाएगा इन प्राकृतिक आपदाओं से |

आशा 




05 अक्तूबर, 2021

क्या खोया क्या पाया


                                        क्या खोया क्या पाया मैंने 
                                       इस वृहद संसार में
                                        यूँ ही भटकती  रही अपनी 
                                       चाह की तलाश में 
                                      कभी सोचा न था यह मार्ग 
                                     इतना दुर्गम होगा 
                                 मरुभूमि में मृग मारीचिका की
                                    होगा  तलाश जैसा
                                  मन को बहुत संताप हुआ
                                    जब ओर न छोर मिला 
                                 सही मार्ग चुन न पाई 
                                 अपनी कमजोरी समझ न पाई 
                               बाह्य आडम्बर ने मन मोहा 
                                  अपने अंतस को न टटोला
                               पर अब पछताने से क्या लाभ
                                      समय लौटन पाया |
                                            आशा 
   

04 अक्तूबर, 2021

हाइकु


 

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हाइकु मेरे

पूर्ण हैं या अपूर्ण

नहीं जानती

 

बिल्ली आई है

चूहे तेरी न खैर

कजा आई है

 

प्यार है मेरा

बिकाऊ नहीं यह

है अनमोल

 

जीत व् हार

दो पहलू सिक्के के

एक हमारा

 

जीना मरना

मनुष्यों के लिए ही

है आवश्यक

 

प्यार है मेरा

बिकाऊ नहीं यह  

है अनमोल

 

एहसास है

अपने अस्तित्व का

भूला नहीं हूं


जलधि जल 

मीठा न होता कभी 

सदा से  खारा 


प्यासा रहा हूँ 

सागर तट पर

मुहँ न धुला

 

अधूरी प्यास 

बटोही तेरी रही 

 सागर तीर 

 

मीठी है वाणी 

 बोलों की है छुआन 

कटूता नहीं      

 

आशा

 

11

खुद्दारी


                                                        खुद्दारी है आवश्यक

यदि समझे न अर्थ इसका

तो क्या जान पाए

अपने को न पहचान सके तो क्या किया |

हर बात पर हाँ की मोहर लगाना

नहीं होता  कदाचित यथोचित

कभी ना की भी आवश्यकता होती है

अपनी बात स्पष्ट करने के लिए |  

दर्पण में अपनी छवि देख 

अपने विचारों में अटल रहना  

स्वनिर्णय लेना है आवश्यक

अपने आचरण में परिवर्तन न हो  

है यही खुद्दारी सरल शब्दों में |

अपनी बात पर अडिग रह  

 सही ढंग से कोई कार्य  करना

अपनी बात भी रह जाए

 और किसी की हानि न हो |

स्वनिर्णय आता खुद्दारी के रूप में

यदि होना पड़े इस से दूर

 तब दूसरों की जी हुजूरी कहलाती

और  खुद्दारी नहीं रहती |

जीवन की सारी घटनाएं इससे सम्बंधित होतीं   

खुद्दारी आत्म विश्वास में वृद्धि करती   

मन को चोटिल होने से बचाती

 सफल जीवन जीने की राह दिखाती |

आशा

03 अक्तूबर, 2021

काला कागा


 

वर्ष भर तो याद न किया
कागा अब क्यों याद आया
पहले जब भी मुडेर पर बैठते
बच्चे तक तुम्हें उड़ा देते थे
पर अब बहुत आदर सत्कार से
बुलाकर सत्कार किया जाता तुम्हारा
ऐसा क्यों किस लिए ?
क्या तुम में भी पितर बसते हैं
या यह मेरी केवल कल्पना है |
तुम भी काले कोयल भी काली
पर स्वर तुम्हारे कर्ण कटु होते
कोयल मीठी तान सूनाती
अमराई में जब गाने गाती
|उससे तुम्हारा मन भोला भाला
तुम्हारा घरोंदा ही उसके
बच्चों का पालना होता
कोई उसकी चालाकी जान न पाता
है ऐसा क्या तुममें विशेष
मैं आज तक जान न पाई
कागा कोयल एक् से
अंतर ना कर पाई |
आशा

02 अक्तूबर, 2021

किससे अपनी बातें कहूं

 

                  करवट बदल कर रातें गुजारी

पर  नींद न आई मैं क्या करूं

किससे  अपनी बातें कहूं

अपना मन हल्का करूं |

दिन तो व्यस्त रहने में गुजरता है

पर रातें होतीं पहाड़ जैसी लंबी

 आत्म विश्लेषण ही  हो पाता  

पर संतुष्टि को छू तक नहीं पाता |

 सही गलत पर विश्लेषण की

मोहर लगना अभी रहा शेष

ऐसा  न्यायाधीश न मिला

जो मोहर लगा पाता |

कम से कम रातों में नींद तो आती

स्वप्नों की दुनिया में खो जाती

भोर की प्रथम किरण जब मुंह चूमती

कुछ देर और  सोने का मन होता

नभ में पक्षियों की उड़ान और कलरव  

जागने को  बाध्य करते |

रात्री जागरण का कारण भूल

रात में चाँद  तारे गिनना छोड़  

मैं उठ जाती और सुबह से शाम तक

दैनिक कार्यों में व्यस्त हो हाती हूँ |


आशा   




01 अक्तूबर, 2021

जीने में क्या रखा है ?


 

वर्तमान में जीना ही

सच्चा जीना है

केवल बीतें कल को

ले कर रोना

 उन्हीं यादों में

 डूबे रहना

वर्तमान से दूर भागना

 बीते कल में

उलझे रहने में

 यादों में खोए रहने में

 क्या लाभ है

आज को भी बर्वाद

कर देता है

आने वाले कल की

 कल्पना के

स्वप्न देखने से

क्या फ़ायदा  है

जीना भार स्वरुप

लगने लगता है

जब उससे बाहर

 आना चाहो

लौट नहीं पाते

सांस लेने को जगह

 नहीं मिलाती

खुले आसमान में

उड़ नहीं पाते

बहुत घुटन होती है

जिन्दगी की चाह

 नहीं रह जाती

पर अपने हाथ में

कुछ भी नहीं है

जो लिखा है भाग्य में

वही सच्चाई है |

आशा