कुनकुनी धूप खिली है वादियों में
रश्मियों ने पैर पसारे घर के आँगन में
प्रातः का मंजर सुहाना हो गया
गीत गाए दिल खोल परिंदों ने |
व्योम भरा है उड़ते पक्षियों के गुंजन से
अनोखी छटा छाई है लाल सुनहरे अम्बर में
झूमती खेतों में बालियाँ दृश्य मनोरम है
लयबद्ध कलरव उड़ते उडगन का मन को बांधे हैं |
प्रातः की बेला में जब मंद हवाओं के झोके आए
आदित्य चला देशाटन को रथ पर हो कर सवार
धूप का आनंद उठाते जीव जीवन्त हो जाते
सब कार्यों में व्यस्त हो जाते आगमन भोर का होते ही |
गृहणियां चौके में जातीं वहां का कार्य प्रारम्भ करतीं
बच्चे भी दौड़े आते हलुए की फरमाइश करते
जब अल्पाहार करते चहरे पर मुस्कान लिए
भाव संतुष्टि के आते बड़ा सुकून देते |