ओ शरद पूनम के चाँद
तुम आए ठंडी हवा के साथ
मैंने खीर का भोग लगाया है
अमृत वर्षा के लिए है |
ऐसी है क्या बात
मिठास दुगुनी हो जाती
मिलते ही रात्रि में
तुम्हारी चांदनी का साथ |
जाने कितने रोगों का
उपचार है तुम्हारे पास
तुम हो अदभुद चिकित्सक
उन के जिनने सेवन किया प्रसाद
श्वास जैसे मर्ज के लिए |
सफल साहित्यिक आयोजन
किये जाते हर वर्ष
जब तुम आते
नृत्य निशा भी आयोजित होती आज |
गीतों का आनंद ही कुछ और होता
तुम्हारी छत्र छाया में
सभी मनोयोग से हिस्सा लेते
इस आयोजन में |
शरद पूर्णिमा की चमक अनोखी
मन मोह रही है
चंद्रमा की रश्मियाँ झलक रही हैं
मौसम रंगीन हुआ है आज |
आशा