11 जनवरी, 2022

नयन सजल हैं


               नयन सजल हैं

दिल भी भराभरा
हुआ संतप्त मन
जीवन में क्या रखा है |
नेत्रों में अश्रुओं का बहना
उनका बहाव नदिया सा
थमने का नाम नहीं लेता
मन को कितना समझाऊँ |
बीते कल को कैसे भुलाऊँ
जब भी विचार मन में आता
उसकी शान्ति हर ले जाता
जितना भी दूर रहूँ उससे
मन का दुःख जीने नहीं देता |
उलझन छोटी हो या बड़ी
कोई निष्कर्ष नजर न आता
यहीं हार जीवन की होती
मरण का मन हो जाता |
जब कोई अपना चला जाता
मन विचलित हो जाता
बहुत समय लगता भुलाने में
जीवन मरण की कहानी रह जाती |
कैसे मन को समझाऊँ
यही रीत दुनिया की है कैसे जताऊँ
हार गई दिल को समझा कर
क्षणिक जीवन है जानती हूँ |
किसी का भविष्य कोई नहीं जानता
यह भी मालूम है
फिर यह विचलन कैसा है
यही मानव कमजोरी है |
आशा
Smita Shrivastava, Phoolan Datta and 13 others
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  • Dilip Kumar
    प्रणाम।
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    Asha Lata Saxena replied
     
    1 Reply
  • Smita Shrivastava
    शाश्वत सत्य को दर्शाती भावपूर्ण रचना
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    • 21h
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    • 21h

09 जनवरी, 2022

हूँ कितनी सक्षम


 

हूँ कितनी सक्षम

 अपने आप में

जब बर्तोगे मुझे 

 तभी जान पाओगे |

कहने सुनने की 

आवश्यकता नहीं

खुद देखोगे तभी

 निर्णय ले पाओगे |

 है कितना विश्वास

 खुद पर मुझे  

हूँ समर्थ मन से  

किसी की आश्रितं नहीं मैं 

  यही विश्वास दिलाना 

चाहती हूँ तुम्हें भी 

अपनी क्षमता जान

 कदम बढाए मैंने

किसी कार्य को करने से

 भय भीत नहीं मैं |

हूँ आज की नारी

 पहले सी कमजोर नहीं हूँ 

अपने कर्तव्य व अधिकारों को

खूब समझती हूँ |

  समाज के  नियमों का

 पालन करती हूँ 

केवल  अधिकारों की चाहत ही    

 नहीं हैं प्रिय मुझे |

 कर्तव्य ही सब से पहले

पूर्ण  करती हूँ  

किसी की रोकाटोकी

मुझे नहीं भाती |

यही आदत मुझे

 सब का बुरा बनाती  

फिर भी अपनी सीमाएं

 पहचानती हूँ |

 हूँ आज के भारत की नारी

यही क्या कम है   

किसी बैसाखी की 

आवश्यकता नहीं मुझको |

किसी भी क्षेत्र में अपनी 

 सफलता सिद्ध कर सकती हूँ 

अपना संरक्षण खुद

 कर सकती हूँ |

आशा 

हाइकु (हिन्दी दिवस )


 

हैं हिन्दी भाषी

भारत के निवासी

है बोली हिन्दी

 

भाषा है हिन्दी 

 सरल सहज है  

व्याकरण भी

 

हैं हिन्दुस्तानी  

भारत के  निवासी 

 बोलते  हिन्दी  

  

बिंदी हिन्दी की

निखारे भाषा मेरी 

भाल की टीकी   

 

बोल चाल की

होती भाषा सरल 

 हिन्दी भाषा की

 

बड़ी सरल

सुनना समझना

भाषा है हिन्दी 

 

भाषा प्रवाह  

खुद को मिला लेता  

अन्य भाषा से  

 

  भाषाएँ कई

समा जातीं हिन्दी में

 छोड़तीं नही


संपर्क भाषा 

सरलता से होती 

भाल की बिंदी


अपनी भाषा 

प्रिय है मुझ को भी 

हिन्दी साहित्य   

 

आशा   

07 जनवरी, 2022

शरारती बच्चों पर नियंत्रण


 

किसी बालक पर प्यार न आया

क्या कारण हुआ जान न पाया

बचपन में की शैतानी जी भर 

 मां को शर्म आती हमारी शरारतों पर  |

कहना नहीं मानने से गालों पर

दो चार चांटे पड़ ही जाते  

लाल लाल गाल हो जाते 

मटका भर आंसू बह जाते |

 कुछ काल बाद भूल भी जाते 

किस वर्जना की सजा मिलती 

 अनुशासन थोपे जाने की कमी न थी

 अब आदत हो गई वे कार्य न करने की|

जिस परिवेश में पले बड़े हुए

वैसा हमारा  स्वभाव हो गया

 बस थोड़ा सा फर्क हुआ अब

बच्चों को दण्ड नहीं देते  थे |

  पर  उन्हें साथ ले जाने से कतराते

ज्यादातर घर में ही छोड़ने लगे

टीवी और खिलोनों के सहारे

छोटे बड़े प्रलोभन दे कर |

वे और उद्दंड हो गए

 बिना किसी नियंत्रण के   

कोई तरकीब न सूझी

 उनसे कैसा हो व्यवहार |

मन में बेचैनी बढी 

मेरा मन उचटने लगा

प्यार मन में ही 

सिमट कर रह गया |

अब कोई प्यार नहीं उमढ़ता

 उनकी शरारतें देख 

कहना न मानना उनका 

मन को दुखी करता 

अब प्यार नहीं उमढता|

आशा 











  

आशा    

06 जनवरी, 2022

हाइकु (श्याम )


 

श्यामल रंग

मन मोहनी छवि

प्यारी लगती


बरसाने की

राधा रानी हो गईं  

श्याम की शक्ति

                                                                                                     

राधा जलतीं

श्याम की बाँसुरी से

                     लगी सौत सी                                                   

कृष्ण ऊधव

 मित्रता ले चली है 

वृंदावन से


चले दोनो ही 

मथुरा नगर को

रथ से चले  


बरसाने की

राधा श्याम की शक्ति  

 प्रथम पूज्य 


श्याम सलोने 

नन्द जी के हैं लाला 

मन मोहते  

आशा 

  

05 जनवरी, 2022

मन क्या सोचता


                                                                  कोरा  कागज़

कलम और स्याही

अब क्या लिखूं

 विचार शून्य हुआ

क्यों है किस कारण

दिल उदास

हुआ जाता बेरंग

जिन्दगी देख

देखे जीवन रंग

 स्थाइत्व नहीं

जीवन में रहता

वह बहता 

 जाना चाहता कभी

यहीं रहना  

सरिता की गति ही  

मंथर होती   

रहती न एकसी

 जब जाना हो    

अधर में झूलता

राह खोजता

अपनी आने वाली

योनी  के लिए

आगे क्या होगा

कहाँ होगा ठिकाना

नहीं जानता |

आशा