22 मार्च, 2022

कविता



मन के भाव

जब पिरोए जाते

एक माला में

 सजाए जाते वाक्यों में |

दिलसे सुनाए जाते

लयबद्ध किये जाते

 दिखाई देते

दिल में छुपी

छवियों के रूप में

यही है कविता का

 असली रूप |

 जब भी कोई कविता करता

                      अपने अलग अंदाज में

मन बड़ा प्रसन्न होता

रोते को हंसा देता

जीवन में रंग भरता |

आशा 




21 मार्च, 2022

बोलती आँखें



तुम बोलो या नहीं

या मुंह में ताला लगा लो    

पर आँखे तुम्हारी बोलतीं हैं

होती है गवाह तुम्हारे अंतस की  |

नैन सदा सजग रहते हैं

अवसर मिलते ही दिखा देते हैं सब 

कितनी बातें भी छिपालो मन में   

उन में अक्स उतरता सब का |

 दिखई देता स्पष्ट

 चाहे न बताओ उन्हें 

पर सब स्पष्ट हो जातीं उनमें |

आँखें देखते ही जान जाती हैं 

तुम्हारे मन की बातें 

लाख कोशिश करो  

कोई बात छिप नहीं सकती |

तुम्हारी  आँखों में है अद्भुद क्षमता 

सजल हो कही अनकही 

सब कह जाती हैं वें हैं दर्पण सी

 सब अक्स स्पष्ट उभरते हैं वहां |

 जब अश्रु जल प्रवाहित होता नैनों से  

दीखता कलकल करती नदिया सा

 व्यवधानों की चिंता न करता 

 अनचाही स्मृतियां बहा ले जाता

 अपनी लहरों के संग |

आशा

20 मार्च, 2022

प्रेम


 

प्रेम के कई रंग देखे

बचपन से आज तक

जब जन्म हुआ

अपूर्व प्रेम माँ का मिला

थोड़े बड़े हुए

 मित्रों के प्रेम कासिलसिला चला |

यौवन आते ही शादी की बातो ने उलझाया

पति के प्रेम का सुख पाया

परिवार से रिश्तों को समझा

एक नया प्रेम का रूप दिखा |

आज जब जीवन के 

अंतिम पड़ाव पर ठहरी हूँ

भगवत भजन की लौ लगी है 

आध्यात्म से प्रेम हुआ है

मैंने ईश्वर में ध्यान लगाया है |

और न जाने कितने प्रेम है दुनिया में

उनकी दुनिया है कितनी विस्तृत

इसकी थाह नहीं मिलती|

प्रेम की व्याख 

शब्दों में करना

 सरल नहीं

मेरे बस की बात नहीं है |

प्रकृति प्रेम .पशु पक्षियों से प्रेम

पर्यावरण प्रेम 

और न जाने कितने प्रेम हैं 

अभी तो इतना ही अनुभव है |

आशा

  

19 मार्च, 2022

जीवन की शाम




 

जीवन की शाम कैसे मधुर हो

आज तक किसी ने बताया नहीं 

जितनी कोशिश करने की थी क्षमता 

पूरी कोशिश की मन को स्थिर रखने की |

आज तक मन को संतुलित रखा है

हर बात तुम्हारे आधीन यह भी समझा

कभी तनाव मन में न रखा

 फिर भी न जाने  क्यों मन अब बस में नहीं |

कैसे उसे समझाऊँ नियंत्रित रखूँ

 देना  शक्ति मुझे  मन कमजोर रहूँ  ना 

इस संसार से बाहर निकल 

भव सागर के बंधन तोडूं 

कर्तव्यों से मुंह न मोडूं|

आशा

17 मार्च, 2022

तृष्णा

 

                  माया, तृष्णा ,मोह ,मद

चारों नरक के द्वार

जीव फंसा बीच में 

बंद हो गया द्वार |

सोच में ऐसा उलझा

बाहर  निकल न पाया

 सोने के पिजरे से

पञ्च तत्व के  पिंजर से  |

मोह ने पीछे से जकड़ा ऐसे

तृष्णा बढी बढ़ती गई

कोई सीमा न रही उसकी  

मद हुआ सर पर सवार |

 भूलवश दरवाजा पिंजर का

 जब खुला रह गया

जीव उड़ चला पंख पसार

खुले आसमान में |

आशा

सयाली छंद -४-



 

  १-होली

आई है

संग लिए रंग

मुझे है

पसंद |

२- उड़ता

रंग गुलाल

मीठी है भंग  

खाई गुजिया

 संग |

३- प्रियतम

 इन्तजार तुम्हारा

 करते रहे हम

 रही  फीकी  

होली |

४- होली

रंगोत्सव  है

जलती  बुराइयों  का   

बैर मिटे  

 अपना  |

५- होली

आई है

मिलन के लिए

बैर नहीं  

चाहिए 

६-,उड़ा 

अवीर गुलाल 

होली आई है 

हम सब 

मिले |

७-आज  

गुलाल लगाया 

हुए मद  मस्त सब 

 भंग में 

हम  

आशा 

16 मार्च, 2022

उम्मीद


 


मुझे उम्मीद न थी

हर बात पर पक्ष मेरा लोगे

मुझ पर विश्वास करोगे 

तुम मेरे मनमीत बनोगे |

मेरी कल्पना में थी

एक तस्वीर तुम्हारी

जब जीवन के पन्नों पर उतरी

बढाया आत्मबल मेरा |

मनमीत होने का मेरे

पूरा प्रतिफल दिया तुमने

मुझे कोई दिक्कत न हुई

तुम को समझने में |

यही क्या कम है

तुम में और मुझमें 

तालमेल है गहरा इतना

तुमको मैं समझती हूँ

समझे तुम मुझे पूरी तरह |

उम्मीद  यही थी  तुमसे

अपेक्षा मेरी पूर्ण करोगे

आशा को निराशा में न बदलोगे

उम्मीद पर खरे उतरोगे |

आशा